सामुदायिक रसोई बनाने के मसले पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट सिरे से उखड़ गया। सीजेआई एनवी रमन्ना की बेंच ने केंद्र सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि आप भूख का ख्याल रखना चाहते हैं तो कोई संविधान, कोई कानून ना नहीं कहेगा। हम पहले से ही देरी कर रहे हैं। बेंच ने सरकार को दो सप्ताह का समय दिया, लेकिन अटॉर्नी जनरल ने योजना को अंतिम रूप देने के लिए 3 सप्ताह का समय मांगा। उनकी दलील पर बेंच ने सहमति देते हुए कहा कि यह अंतिम समय दिया जा रहा है। लेकिन इस बार समग्र जवाब के साथ ही कोर्ट में आएं।
ध्यान रहे कि बीती 27 अक्टूबर को हुई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश पारित किया था। इसमें केंद्र को राज्य सरकारों के साथ बातचीत कर एक योजना के साथ आने को कहा गया था। बेंच ने भुखमरी से होने वाली मौतों को रोकने के लिए सामुदायिक रसोई नीति तैयार करने की मांग वाली रिट पर सुनवाई के दौरान ये आदेश दिया था। आज की सुनवाई एएसजे ने बेंच को बताया कि आदेश के तहत केंद्र ने राज्यों के साथ वर्चुअल बैठक की थी। लेकिन हलफनामे को देखकर बेंच गुस्से से भड़क गई।
कोर्ट ने कहा कि हलफनामे से नहीं लग रहा कि आप गंभीर भी हैं। आप जरूरी काम के बजाए पुलिस जैसी जानकारी एकत्र करने में लगे हैं। आपको संबंधित पक्षों के साथ बैठक करके कोर्ट को बताना था कि क्या कदम उठाने जा रहे हैं, लेकिन 17 पेज के हलफनामे में केवल कागजी खानापूर्ति के सिवाय कुछ नहीं किया गया है। कोर्ट ने कहा कि जो बात हमने कही थी उसका कहीं कोई जिक्र इसमें नहीं किया गया है।
कोर्ट ने कहा कि 17 पेज का हलफनामा और योजना को लेकर केवल लीपापोती। सीजेआई ने इस बात पर भी नाखुशी जताई कि अवर सचिव स्तर के अधिकारी ने हलफनामा दायर किया गया है। सीजेआई ने हत्थे से उखड़ते हुए कहा कि यह आखिरी चेतावनी है जो वह केंद्र सरकार को देने जा रहे हैं। हम कुछ कहते हैं और आप अपने हिसाब से कहानी लिखते हैं। यह नहीं चल सकता। सीजेआई ने अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल से पूछा कि जिम्मेदार अधिकारी ने हलफनामा क्यों नहीं तैयार किया।
सीजेआई ने कहा कि एक व्यापक योजना बनाएं। उन क्षेत्रों की पहचान करें जहां इसकी तत्काल आवश्यकता है। लेकिन सरकार के जवाब से लग रहा है कि वो अभी भी सुझाव जुटा रहे हैं। कोर्ट ने केंद्र सरकार की बैठक में भाग लेने के लिए राज्यों को निर्देश देते हुए कहा कि राज्यों को कोई आपत्ति है तो हम अगली सुनवाई में अदालत में विचार करेंगे। बेंच ने एजी से याचिकाकर्ताओं के सुझावों पर भी गौर करने को कहा। कोर्ट ने आखिर में कहा कि एक कल्याणकारी राज्य का संवैधानिक कर्तव्य है कि वह यह सुनिश्चित करे कि कोई भूख से न मरे।