देश के सबसे बड़े केंद्रीय अर्धसैनिक बल ‘सीआरपीएफ’ ने लड़ाकू पोशाक (कॉम्बैट ड्रेस) को लेकर नए आदेश जारी किए हैं। अभी तक ‘सामान्य ड्यूटी’ वाले जवान और अधिकारी ही ‘लड़ाकू पोशाक’ पहनते रहे हैं। वजह, किसी भी तरह के छोटे बड़े ‘ऑपरेशन’ में सामान्य ड्यूटी वाले जवान/अफसर ही शामिल होते हैं। सीआरपीएफ मुख्यालय ने 26 नवंबर को जारी आदेशों में कहा है कि अब ‘मिनिस्ट्रियल व हॉस्पिटल’ कर्मी भी ‘लड़ाकू पोशाक’ पहन सकेंगे। यह ड्रेस मुख्यालय द्वारा प्रदान की जाएगी। इसका मकसद सीआरपीएफ में एकरूपता प्रदर्शित करना है।
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सामान्य तौर पर ‘लड़ाकू पोशाक’ फील्ड में ही ज्यादा पहनी जाती है। सीआरपीएफ मुख्यालय ने पिछले दिनों अपने एक आदेश में कहा था कि मुख्यालय में तैनात जीडी के अफसर प्रत्येक शुक्रवार को ‘लड़ाकू पोशाक’ पहनेंगे। अभी तक यह ड्रेस, ‘मिनिस्ट्रियल व हॉस्पिटल’ कर्मियों को नहीं मिलती थी। अगर जरूरत होती है तो ये अपनी खाकी ड्रेस ही पहनते हैं। जवानों को दस हजार रुपये बतौर यूनिफॉर्म अलाउंस मिलता है। सामान्य ड्यूटी ‘जीडी’ वाले अधिकारी/जवान, मिनिस्ट्रयल व हॉस्पिटल स्टाफ अब शुक्रवार को ‘लड़ाकू पोशाक’ पहनेंगे।
ये आदेश ऐसे समय में आया है, जब सीआरपीएफ में कैडर रिव्यू प्रक्रिया चल रही है। सामान्य ड्यूटी से लेकर मिनिस्ट्रियल स्टाफ तक के प्रतिनिधियों ने अपने आवेदन मुख्यालय में जमा कराए हैं। हितों को लेकर सभी के अपने-अपने दावे हैं। जीडी कैडर के अफसरों का कहना है कि उन्हें प्रमोशन त्वरित गति से मिलना चाहिए। अभी पहले प्रमोशन में ही 15 साल लग रहे हैं। ऐसे में वे अपनी पूरी सेवा के दौरान कमांडेंट या डीआईजी के पद तक ही पहुंच सकेंगे। एक रिपोर्ट ऐसी भी मिली है, जिसमें सहायक कमांडेंट के साढ़े चार सौ पद खत्म करने की मांग की गई है।
मिनिस्ट्रियल स्टाफ ने जो प्रस्ताव दिया है, उसमें जीडी कैडर की इस रिपोर्ट का विरोध किया गया है। इनका तर्क है कि मिनिस्ट्रियल स्टाफ को भी सहायक कमांडेंट और डिप्टी कमांडेंट बनने का हक है। जीडी कैडर का तर्क है कि मिनिस्ट्रियल स्टाफ ने किसी भी ऑपरेशन या कानून व्यवस्था बनाए रखने की ड्यूटी में भाग नहीं लिया है। वेतन भत्ते इन्हें जीडी कैडर की तरह मिलते हैं। अब ‘लड़ाकू पोशाक’ के आदेशों ने ऐसी चर्चाओं को गति दे दी है।