क्या पांच राज्यों में चुनाव की वजह से वापस हुए कृषि कानून? जानिए प्रधानमंत्री मोदी के इस मास्टर स्ट्रोक का कहां-कितना होगा असर

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अगले वर्ष पाँच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले मोदी सरकार ने एक बड़ी घोषणा कर सभी राजनीतिक समीकरण बदल कर रख दिए हैं। लंबे समय से कृषि कानून वापस लेने की मांग कर रहे किसानों के समक्ष मोदी सरकार झुक गई है। मोदी सरकार ने किसानों की मांग को स्वीकार कर तीनों कृषि कानून को वापस लेने का निर्णय लिया है। इसके साथ ही सभी किसानों को धरना स्थल से अपने घर लौटने की अपील की है। इस निर्णय के साथ ही विपक्ष के हाथ से प्रधानमंत्री मोदी ने किसानों का मुद्दा छीन लिया है। किसानों के मुद्दे के दम पर अगले वर्ष के विधानसभा चुनावों में भाजपा को घेरने की विपक्ष की योजना पर पानी फेर दिया है। चलिए एक नजर डालते हैं इस घोषणा से किन राज्यों पर किस तरह का प्रभाव पड़ेगा!

किन राज्यों पर किस तरह पड़ेगा प्रभाव?

अगले वर्ष गोवा, मणिपुर, पंजाब, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं। कृषि कानून को वापस लेने का प्रभाव बिहार और पूर्वांचल क्षेत्रों में नहीं पड़ेगा, परंतु कुछ राज्यों पर इसका प्रभाव चुनावों में देखने को मिल सकता है।

पंजाब

सबसे बड़ा प्रभाव किसी राज्य पर पड़ेगा तो वो पंजाब है, जहां भाजपा ने अकेले लड़ने का निर्णय लिया है। यहाँ के ही किसान सबसे अधिक प्रदर्शन कर रहे थे, और कृषि बिल वापस लेने की मांग कर रहे थे। पंजाब विधानसभा के लिए 117 सीटों पर इस बिल का बड़ा प्रभाव देखने को मिला था।

गुरु पर्व के अवसर पर लिया गया मोदी सरकार के इस निर्णय ने पंजाब की जनता को राहत पहुंचाई है। ये कृषि कानून ही थे जिस कारण अकाली दल ने भाजपा के साथ गठबंधन तोड़ा था। इसी वर्ष पंजाब निकाय चुनाव में भाजपा के खराब प्रदर्शन के पीछे का कारण कहीं न कहीं कृषि कानून को ही बताया जा रहा था। 2017 में बीजेपी अकाली दल के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ी थी, और केवल तीन सीट ही जीत पायी थी। इस बार कहा जा रहा है कि भाजपा को शून्य या एक सीट मिल सकती है, परंतु अब इसमें बदलाव देखने को मिल सकता है। गौर करें तो पंजाब में कांग्रेस में अंतर कलह है और अकाली दल से जनता पहले ही नाराज है। ऐसे में अगले वर्ष 2022 के विधानसभा चुनावों में अब पंजाब की जनता भाजपा को एक बड़े विकल्प के तौर पर देख सकती है। स्पष्ट है इससे चुनावों में अब बाद उलटफेर देखने को मिल सकता है।

उत्तर प्रदेश
उत्तर प्रदेश में भाजपा अभी सत्ता में है और यहाँ क्षेत्रीय दलों ने किसानों के मुद्दे को खूब भुनाया। कृषि कानून को लेकर लंबे समय से प्रदेश के किसान भी प्रदर्शन कर रहे थे। लखनऊ से सटे बाराबंकी, सीतापुर और रायबरेली के अलावा पश्चिमी यूपी में किसान सड़क पर विरोध प्रदर्शन करते हुए नजर आए। वहीं, दिल्ली-यूपी के गाजीपुर बार्डर पर भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत किसान आंदोलन की अगुवाई कर रहे थे। हालांकि, इस घोषणा पर टिकैत का कहना है कि संसद में कानून वापस लिए जाने के बाद ही वो प्रदर्शनस्थल से वापस अपने घर जाएंगे। किसान 26 नवंबर, 2020 से तीनों कृषि कानूनों के वापस लिए जाने की मांग कर रहे थे। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 15 ज़िलों की 73 सीटों पर भाजपा का प्रभाव रहा है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान इस कानून से सबसे अधिक नाराज थे। इसी नाराजगी का फायदा सपा और बसपा उठाना चाहते थे और अब स्थिति विपरीत दिखाई दे रही है।

उत्तराखंड

उत्तराखंड राज्य की परिस्थितियां अन्य राज्यों से भिन्न है। यहाँ कुछ किसान इसका पूर्ण रूप से समर्थन कर रहे थे तो कुछ इसके विरोध में थे। उत्तराखंड राज्य में करीब 13% भू-भाग पर खेती की जाती है जोकि मुख्य रूप से प्रदेश के मैदानी जिलों देहरादून, हरिद्वार और उधमसिंह नगर में होती है। यहाँ भी कृषि कानून को लेकर किसानों में नाराजगी दिखाई दी थी। कई सर्वे में ये सामने आ रहा था कि भाजपा को उत्तराखंड में बाद नुकसान झेलना पड़ सकता है। हरिद्वार जिले की 9 विधानसभा सीटों को किसान सीधे तौर पर प्रभावित कर सकते थे। मंगलौर, झबरेड़ा, भगवानपुर, कलियर, ज्वालापुर, खानपुर, लक्सर, रानीपुर और हरिद्वार में किसानों की जनसंख्या सबसे अधिक है। यही इस कृषि कानून को लेकर सबसे अधिक विरोध प्रदर्शन देखने को मिल रहा था।

हालांकि, गोवा मणिपुर जैसे राज्यों पर कृषि कानून का मुद्दा ज्यादा प्रभाव नहीं डालता क्योंकि यहाँ के प्रशासनिक मामलें और राज्य की अन्य समस्याएं ही चुनावों के दौरान केंद्र में रहेंगी।

क्या कहा प्रधानमंत्री ने ?

कृषि कानून की वापसी का ऐलान करते हुए पीएम मोदी ने देश के नाम अपना संबोधन भी दिया। इस दौरान पीएम मोदी ने कहा, “कृषि कानून लाने का उद्देश्य छोटे किसानों को मजबूत करना और उन्हें फसल बेचने के लिए अधिक विकल्प देना था। ये मांग लंबे समय से किसान संगठन, कृषि विशेषज्ञ ..सभी कर रहे थे। कई सरकार ये कानून लाने का प्रयास कर रही थी, परंतु हम इसे लेकर आए। कई किसानों ने इसका समर्थन किया.. मैं उनका धन्यवाद करता हूँ। देश के हित में, गाँव गरीब के उज्जवल भविष्य के लिए, किसानों के भविष्य के लिए ये कानून लेकर आई थी। परंतु पूर्ण रूप से किसानों के हित में इस कानून को किसानों का एक वर्ग समझ नहीं सका।”

पीएम मोदी ने आगे कहा, “हमने विनम्रता से उन्हें अनेक माध्यमों से समझाया। बातचीत भी लगातार होती रही, हमने किसानों की बातों के तर्क को समझने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी, परंतु दो साल तक इस कानून को रोकने के निर्णय के बावजूद हम सफल नहीं हो सके और आज इस कानून को वापस ले लिया है। और मैं आज देशवासियों से क्षमा माँगता हूँ, शायद हमारी तपस्या में ही कोई कमी होगी कि दिए जैसे सत्य के प्रकाश को हम कुछ किसान भाइयों को समझा नहीं पाए। आज मैं आपको बताने जा रहा हूँ कि शीतकालीन सत्र में इस कानून को वापस लेने की प्रक्रिया पूरा कर देंगे।”

इसके साथ ही पीएम मोदी ने कहा कि उनकी सरकार ज़ीरो बजट खेती लेकर आ रही है। उन्होंने कहा कि देश की बदलती आवश्यकता को ध्यान में रखकर, क्रॉप पैटर्न को वैज्ञानिक तरीके से बदलने के लिए, MSP को और पारदर्शी बनाने के लिए एक कमेटी का गठन किया जाएगा। इस घोषणा पर विपक्षी दलों का कहना है कि जो नुकसान किसानों ने इस दौरान झेले हैं उसकी भरपाई तो नहीं हो सकेगी।

कुल मिलाकर कहें तो अगले वर्ष पाँच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले की गई ये घोषणा बड़ा प्रभाव डालने वाली है। कृषि कानून को लेकर दलगत राजनीति पर विराम लगेगा। किसानों को हथियार के रूप में इस्तेमाल करने वाले दलों को झटका अवश्य लगा होगा।

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