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रांची – छोटानागपुर में रहने वाले 20 लाख आदिवासी के धार्मिक आस्था, परंपरा व विश्वास का प्रतीक मुड़मा जतरा करीब 400 साल से लग रहा है. आदिवासी समुदाय मुड़मा शक्ति स्थल को सुप्रीम कोर्ट की तरह मानते हैं. जतरा के बाद से शादी विवाह शुरू होता है, धन कटनी भी शुरू होती है. कहा जाता है कि उरांव और मुंडा समुदाय के बीच इसी स्थल में संधि हुई थी और भाषा का विभाजन हुआ था. इस संधि के बाद इस बात पर सहमति बनी थी कि मुड़मा जतरा से पूरब दिशा में रहने वाले उरांव जाति के लोग भी मुंडारी भाषा का प्रयोग करेंगे, वहीं पश्चिम में रहने वाले मुंडा जाति के लोग उरांव भाषा बोलेंगे. इस फैसले को उरांव और मुंडा जाति के लोगों ने सुप्रीम कोर्ट माना और आज तक वे इसका अनुपालन कर रहे हैं. आदिकाल से जतरा में राजा महाराजा का आगमन होता रहा है. मुड़मा जतरा स्थल को आदिवासी सुप्रीम कोर्ट के रूप में इसलिए देखते हैं कि पड़हा व्यवस्था के अनुसार चलने वाले आदिवासी समुदाय के लोग पहले अपना विवाद या समस्या 5, 7, 12 व 24 पड़हा में निपटाने का प्रयास करते हैं. ऐसा नहीं होने पर मुड़मा शक्ति स्थल में हर हाल में समस्या का समाधान निकाला जाता है जो निर्णय नहीं मानते उन्हें कई प्रकार के सामाजिक दंड दिए जाते हैं.
मेले को लेकर सुरक्षा पुख्ता
इस मेले में 2 हजार से अधिक छोटी-बड़ी दुकानें लगती है, 4000 पुलिसकर्मी और वॉलिंटियर संभालेंगे जतरा की सुरक्षा, जतरा संचालन समिति ने 2000 वोलेंटियर भी बनाया है, निगरानी के लिए 10 वाच टावर और तीन मंच बनाए गए हैं, 100 सीसीटीवी लगाए गए हैं, मेले में 2 दिन में 10 लोग पहुंचेंगे.
Reporter – अखिलेश कुमार