जातिगत भेदभाव एक ऐसा मुद्दा रहा है जिसको लेकर आए दिन देश में सियासत होती रही है। ताजा मामला इसी संदर्भ है जिस पर लोकसभा की पूर्व अध्यक्ष मीरा कुमार ने सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि देश में दो तरह के हिंदू हैं- एक जो मंदिर जा सकते हैं और दूसरे जो मंदिर नहीं जा सकते हैं। मीरा कुमार ने कहा कि 21वीं शताब्दी में भी भारत में जातिगत भेदभाव मौजूद है।
एक कार्यक्रम के दौरान बोलते हुए पूर्व राजनयिक मीरा कुमार ने कहा, ”बहुत से लोगों ने उनके पिता बाबू जगजीवन राम से हिंदू धर्म छोड़ने को कहा था क्योंकि उन्हें जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ता था। लेकिन मेरे पिता ने हिंदू धर्म छोड़ने से इनकार कर दिया, उनका कहना था कि वे इस व्यवस्था के खिलाफ लड़ेंगे।”
खुद दलित समुदाय से आने वालीं मीरा कुमार ने ये सवाल राज्यसभा सदस्य जयराम रमेश की किताब ‘द लाइट ऑफ एशिया- द पोएम दैट डिफाइंड बुद्धा” के विमोचन के दौरान उठाए। मीरा कुमार ने किताब लिखने के लिए जयराम रमेश को धन्यवाद दिया और कहा कि इस किताब ने सामाजिक व्यवस्था का एक बंद दरवाजा खोलने में मदद की है जिसके अंदर लोगों का न जाने कब से दम घुट रहा था।
इस किताब के बारे में जयराम रमेश ने बताया कि उनकी पुस्तक उस कविता पर लिखी गई है और एक प्रकार से उस व्यक्ति की जीवनी है जिसने बुद्ध के मानवता के पक्ष को देखा। जयराम रमेश ने कहा, “जहां तक बोध गया स्थित महाबोधि मंदिर के प्रबंधन का सवाल है तो, मेरी किताब हिंदू-बौद्ध संघर्ष के समझौते की बात भी करती है। किताब लिखने का एक कारण यह भी था कि मैं अयोध्या के संदर्भ में दोनों धर्मों के बीच संघर्ष के हल को समझना चाहता था। मैं इसके पीछे की असली वजह को समझना चाहता था।”
कांग्रेस नेता ने कहा, ”बहुत से अंबेडकरवादी बौद्ध जो धर्मगुरु नहीं कार्यकर्ता हैं, उनका कहना है कि अगर रामजन्मभूमि मामले में सौ प्रतिशत नियंत्रण हिन्दुओं को दिया जा सकता है तो भगवान बुद्ध की कर्मभूमि का सौ प्रतिशत नियंत्रण बौद्धों को क्यों नहीं दिया जा सकता है।”