गोलियां खर्च न हों इसलिए कुल्हाड़ी से कटवाया, 20 लाख का हत्यारा 91 की उम्र में भुगत रहा सजा

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हिटलर’ कहें या फिर शैतान! 5 लाख मुसलमान…20,000 वियतनामी समेत 15 से 20 लोगों का कत्लेआम. अब करीब 47 साल बाद आखिरी हत्यारे के जुर्मों का हिसाब भी हो गया है. 91 साल की उम्र का शख्स, जिसे अदालत ने नरसंहार का दोषी पाया है. कोर्ट का फरमान है कि ता-उम्र उसे सलाखों के पीछे ही रहना होगा.

हम बात कर रहे हैं कंबोडिया (Cambodia) में आखिरी बचे खमेर रूज नेता खिउ सम्फान (Khmer Rouge Leader Khieu Samphan) की. जिसकी एक आवाज पर शहर के शहर को कब्रिस्तान बना दिया गया. जो जिंदा थे उन्हें भी इतना टॉर्चर झेलना पड़ा कि मौत की भीख मांगते थे. खमेर रूज के महज 3 साल के शासनकाल में कंबोडिया की 25 फीसदी आबादी को मौत के घाट उतार दिया गया. वो भी इतने क्रूर तरीके से, जिसे सुनकर आज भी रूह कांप जाती है.

कंबोडिया में UN के समर्थन वाले ट्रिब्युनल कोर्ट ऑफ कंबोडिया (ECCC) ने खमेर रूज शासनकाल के आखिरी बचे नेता को नरसंहार का दोषी पाया है और उम्रकैद की उसकी सजा को बरकरार रखा है. कम्युनिस्ट नेता पोल पोट के नेतृत्व वाले इस राज को कंबोडिया का सबसे क्रूर शासन माना जाता है. इस शासनकाल के आखिरी जिंदा बचे नेता सम्फान की उम्र अब 91 साल की हो चुकी है. वो कंबोडिया का राष्ट्रपति भी रहा. उसने अपनी सजा के खिलाफ अपील की थी और खुद को बेकसूर बताया था. 2018 में उसे मानवता के खिलाफ अपराध का दोषी पाया गया था और उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी.

नरसंहार किया….भूखा मारा…टॉर्चर किया

17 अप्रैल, साल 1975 से 7 जनवरी, 1979 यानी महज 3 साल 8 महीने और 20 दिन का शासनकाल. मगर खमेर रूज शासन के इन 3 साल में कंबोडिया में खून की नदियां बह गईं. चीन के कम्युनिस्ट नेताओं से प्रभावित प्रधानमंत्री पोट पोल ने मुसलमानों, दूसरी जनजाति के लोगों, बौद्ध धर्म का पालन करने वालों समेत लाखों लोगों को निशाना बनाना शुरू कर दिया. इनकी आबादी को तेजी से घटाने के लिए शहर के शहर साफ कर दिए गए. लोगों को कड़ी मजदूरी करने पर मजबूर किया गया. उन्हें टॉर्चर किया गया. उन्हें भूखे रखकर तड़प-तड़पकर मरने पर मजबूर किया गया.

गोलियां खर्च न हों तो कुल्हाड़ी से काटा

दूसरी जाति, धर्म के हजारों लोगों को कहा गया कि उन्हें दूसरी जगह शिफ्ट किया जा रहा है. दरअसल उन्हें मौत के घाट उतार दिया गया. खमेर रूज शासनकाल में इतने बड़े पैमाने पर नरसंहार करने के लिए गोलियां खर्च न हों, इसलिए उन्हें कुल्हाड़ी से काट दिया जाता था. क्रूरता की हदें पार करने के लिए जानबूझकर बच्चों को इस काम के लिए मजबूर किया गया. पोट पोल अक्सर कहा करता था, ‘घास को खत्म करना है तो उसे जड़ से मिटा दो’, इसी वजह से पूरे के पूरे परिवार को खत्म कर दिया गया. बच्चों को उनके परिवार से अलग किया जाता. विशाल पेड़ से उनका सिर टकरा-टकराकर उन्हें मौत के घाट उतारा जाता.

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