सहारा इंडिया में देशभर के 13 करोड़ से अधिक निवेशकों का एक लाख करोड़ रुपए से अधिक फंसा हुआ है। इसमें से 47,000 हजार करोड़ सहारा क्रेडिट कॉपरेटिव सोसायटी लिमिटेड ( SCCSL) और करीब 19,000 करोड़ सहारा रियल एस्टेट कॉरपोरेशन लिमिटेड (SIRCEL) में अटके हुए हैं। इस पर वित्त राज्यमंत्री पंकज चौधरी ने बड़ा बयान किया है।
लोकसभा में सहारा से रिफंड के बारे में पूछे गए एक सवाल के जवाब में चौधरी ने कहा कि सहारा इंडिया ने मूलधन 25,781.37 करोड़ रुपए के मुकाबले कुल 15,506.81 करोड़ रुपए ‘सेबी-सहारा रिफंड’ अकाउंट में जमा कराए हैं।
निवेशकों को कितना मिला सहारा से रिफंड
चौधरी ने कहा कि सेबी ने 17,526 पात्र बांडहोल्डर्स को उनके 48,326 बांड सर्टिफिकेट/पास बुक पर कुल 138.07 करोड़ रुपए का भुगतान किया है। इसमें से 70.09 करोड़ रुपए की मूलधन है, जबकि 67.98 करोड़ रुपए की ब्याज शामिल है। ये भुगतान बांडहोल्डर्स को एनईएफटी और आरटीजीएस के जरिए किया गया है।
वहीं, एक अन्य सवाल के जवाब में चौधरी ने कहा कि सहारा इंडिया ग्रुप निवेशकों की अन्य योजनाओं का भुगतान करने में सक्षम नहीं है। एसआईआरसीईएल और एसएचआईसीएल की ओर से वैकल्पिक रूप से पूरी तरह से परिवर्तनीय डिबेंचर (Optionally Fully Convertible Debentures) जारी कर निवेशकों से 25,781 करोड़ रुपए जुटाए थे, जिसके खिलाफ सहारा इंडिया ने सेबी- सहारा रिफंड खाते में केवल 15,506 करोड़ रुपए जमा कराए हैं। सेबी उन निवेशकों को मूलधन और ब्याज के पुनर्भुगतान कर रहा है, जिन्होंने एसआईआरसीईएल और एसएचआईसीएल के वैकल्पिक रूप से पूर्ण परिवर्तनीय डिबेंचर में निवेश किया था।
सेबी ने 28 मई 2013 को एक प्रेस रिलीज जारी के साथ अगस्त-सितंबर 2014 और दिसंबर 2014 के महीनों के दौरान कई विज्ञापन जारी किए थे, जिसमें रिफंड के लिए आवेदन करने की पूरी प्रक्रिया का विवरण दिया गया था। एसआईआरसीईएल और एसएचआईसीएल के बांडधारकों को भी सलाह दी गई थी कि वे अपने पैसे की वापसी के लिए सेबी को आवश्यक आवेदन करें।
चौधरी ने कहा कि सेबी ने 26.03.2018 और 19.06.2018 को अंतिम विज्ञापन जारी कर एसआईआरईसीएल और एसएचआईसीएल के बांडधारकों को सूचित किया कि 02.07.2018 (कट-ऑफ तिथि) रिफंड के लिए आवेदन प्राप्त करने की अंतिम तिथि थी और कोई भी आवेदन स्वीकार नहीं किया जाएगा ।
उन्होंने कहा, “इसके अलावा, सेबी ने 21.10.2021 को एक इंटरलोक्यूटरी एप्लीकेशन भी दायर की है जिसमें इस मामले में सुप्रीम कोर्ट से और निर्देश मांगे गए हैं और यह वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लंबित है।”