नई दिल्ली। चुनाव करीब आते हैं सरकारें लंबे समय से चली आ रही मांगों को मानने में जुट गई हैं। इसी कड़ी में अब उत्तराखंड सरकार ने साधु-संतों की मांगों के झुकने का फैसला लिया। मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ने मंगलवार को देवस्थान बोर्ड भंग ( Devasthanam Board Dissolved ) करने का ऐलान किया।
दरअसल इससे पहले पहले केंद्र सरकार ने तीन कृषि कानून वापसी की मांग मानी, फिर पराली जलाने को अपराध की श्रेणी में ना रखने की मांग भी किसानों की मानी गई। अब चुनाव से पहले उत्तराखंड सरकार ने साधु-संतों की मांगे मानकर ब्राह्णणों को लुभाने की कोशिश की है।
यह भी पढ़ेंः हरि कुमार ने संभाला नौसेना प्रमुख का पदभार, इस अंदाज में लिया मां का आशीर्वाद, दिल छू लेगा वीडियो उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का फैसला पलट दिया है। सीएम धामी ने मंगलवार को देवस्थानम बोर्ड को भंग कर दिया।
दरअसल इस बोर्ड का लंबे समय से विरोध हो रहा था और तीर्थ-पुरोहित इसे भंग करने की मांग पर आंदोलन कर रहे थे। ऐसे माना जाता है कि त्रिवेंद्र सिंह रावत की कुर्सी भी साधु-संतों की इसी नाराजगी का असर था।
कब हुआ देवस्थानम बोर्ड का गठन?
देवस्थानम बोर्ड का गठन जनवरी 2020 में हुआ था। तात्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इस बोर्ड का गठन किया था। इस बोर्ड के गठन से 51 मंदिरों का नियंत्रण राज्य सरकार ने अपने पास ले लिया था। त्रिवेंद्र सरकार के इस फैसले से साधु-संतों में खूब नाराजगी थी।
चार धामों पर भी सरकार था नियंत्रण
देवस्थान बोर्ड के गठन के बाद उत्तराखंड के प्रसिद्ध चार धाम केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री और बद्रीनाथ का नियंत्रण भी सरकार के पास आ गया था। इसके बाद से ही पुरोहितों में इस फैसले को लेकर नाराजगी थी, उनकी मांग थी कि इस फैसले को सरकार तुरंत वापस ले औऱ बोर्ड को भंग किया जाए।
पुष्कार धामी से चुनाव से ठीक पहले पूर्व सरकार के इस निर्णय को वापस लेकर पुरोहित के साथ ब्राह्णण वोट को साधने की तरफ पहला कदम बढ़ा दिया है।
फैसले में 1 महीने की देरी
इससे पहले पुष्कर धामी ने कमेटी बनाकर 30 अक्टूबर तक ही देवस्थानम बोर्ड को लेकर फैसला लेने की बात कही थी, हालांकि इस पर निर्णय लेने में सरकार को एक महीने का ज्यादा समय लग गया। 30 अक्टूबर की जगह 30 नवंबर को ये फैसला आया।