राष्ट्रीय अवार्ड मिला था BAU को, जानें क्यों है ये विवाद में

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बिरसा कृषि विश्वविद्यालय(BAU) की ओर बिरसा मुंडा की जन्मस्थली उलीहातू गांव में आदिवासी समुदाय के उत्थान के नाम पर कई कार्य किया गया है. इसके आधार पर विश्वविद्यालय को राष्ट्रीय अवार्ड मिला था, जो विवादों में आ गया है. इसका खुलासा आरटीआइ से मांगी गयी जानकारी से हुआ है.

बिरसा कृषि विश्वविद्यालय – बिरसा कृषि विश्वविद्यालय(बीएयू) की ओर बिरसा मुंडा की जन्मस्थली उलीहातू गांव में आदिवासी समुदाय के उत्थान के नाम पर कई कार्य किया गया है. इसके आधार पर विश्वविद्यालय को राष्ट्रीय अवार्ड मिला था, जो विवादों में आ गया है. इसका खुलासा उलीहातू के ही पूर्व वार्ड सदस्य सामुएल पूर्ति द्वारा आरटीआइ से मांगी गयी जानकारी से हुआ है.

बीएयू के फॉरेस्ट्री डीन एवं आइसीएआर नाहेप-कास्ट-आइएफएस परियोजना के प्रभारी डॉ एमएस मल्लिक को आइसीएआर नयी दिल्ली की ओर से फखरूद्दीन अली अहमद नेशनल अवार्ड -2021 दिया गया था. डॉ मल्लिक ने आइसीएआर के 94वें स्थापना दिवस पर नयी दिल्ली में बतौर टीम लीडर अवार्ड हासिल किया था. श्री पूर्ति ने आरटीआइ के माध्यम से नाहेप परियोजना के तहत उलीहातू गांव में आदिवासी समुदाय के उत्थान के लिए किये गये कार्यों की साक्ष्य के साथ रिपोर्ट मांगी थी. गांव में आदिवासी समुदाय के बीच मवेशी के नस्लों का विकास, वाटरशेड की स्थापना, पशुओं का कृत्रिम गर्भाधान, कृत्रिम गर्भाधान के बाद बछड़ों की संख्या, फसल किस्म का वितरण एवं उपज तथा पौधरोपण के संबंध में लाभुकों के नाम एवं आधार संख्या तथा कुल लाभुकों की संख्या की विवरणी मांगी है, लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन ने कोई जवाब नहीं दिया है.

डॉ एमएस मल्लिक और उनकी टीम के राष्ट्रीय समन्वयक डॉ प्रभात कुमार और परियोजना के रिसर्च एसोसिएट डॉ अदयंत कुमार द्वारा उलीहातू गांव के भ्रमण से संबंधित जानकारी भी मांगी गयी थी. डॉ मल्लिक ने अपने जवाब में सिर्फ इतना ही कहा कि विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों द्वारा अलग-अलग कार्य किया गया है. इसका विस्तृत विवरण विश्वविद्यालय के विभिन्न निदेशालय, संकाय, विभाग, केवीके आदि से ही प्राप्त किया जा सकता है.

संतुष्ट होने के बाद ही आइसीएआर ने दिया था अवार्ड – डॉ मल्लिक

फॉरेस्ट्री कॉलेज के डीन सह नाहेप परियोजना के प्रभारी डॉ एमएस मल्लिक ने कहा है कि आरटीआइ से जिन सवालों का जवाब मांगा गया था उसका जवाब उसी अनुरूप में दिया गया है. कई सवाल ऐसे भी थे, जो उलीहातू में चल रही योजना से भिन्न थे. बिरसा कृषि विश्वविद्यालय ने उलीहातू गांव को गोद लिया है. कुलपति स्वयं इसकी मॉनिटरिंग कर रहे हैं. पूरी तरह संतुष्ट होने के बाद ही आइसीएआर ने अवार्ड दिया है. आरोप बेबुनियाद हैं. कोई भी वहां जाकर योजना अंतर्गत कार्य देख सकता है. यह योजना 2019 से ही चल रही है. पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू भी वहां गयी थीं. यहां विश्वविद्यालय के कई विभाग मिल कर कार्य कर रहे हैं.

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