धनबाद। सीएसआईआर-केंद्रीय खनन एवं ईंधन अनुसंधान संस्थान द्वारा बरवा रोड स्थित सभागार में “ऊर्जा, जलवायु परिवर्तन एवं मैं” विषय पर चर्चा-सह-जागरूकता सत्र के आयोजन में आईआईटी बॉम्बे के प्रोफेसर चेतन एस. सोलंकी ने अपने सारगर्भित व्याख्यान से सभी को लाभान्वित किया।
उन्होंने बताया कि संसार को चरम सीमाओं की ओर धकेला जा रहा है। अत्यधिक तापमान, मौसम की भयावह परिस्थिति, पानी की कमी, प्रभावित वायु गुणवत्ता पृथ्वी को बदत्तर बना रही है। यह चरम स्थिति मानव प्रजाति द्वारा ही लाई गई है। हम सचमुच अकेले ही हमारे प्यारे ग्रह की मिट्टी, हवा, पानी, जंगल इत्यादि को नष्ट करने के लिए जिम्मेदार हैं।
पृथ्वी ही एकमात्र ऐसा ग्रह है, जो जीवन विद्यमान है। टूथब्रश के सबसे नन्हे ब्रिसल से लेकर एक विशाल बोइंग विमान तक, सब कुछ प्रौद्योगिकी के उपयोग से बनाया गया है और प्रौद्योगिकी के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यदि प्रत्येक व्यक्ति ऊर्जा के गैर-नवीकरणीय स्रोतों का तेजी से उपयोग करना जारी रखता है, तो हम पृथ्वी को नुकसान पहुंचा रहे हैं।
एक समय में एक इंसान, अनजाने में ही सही वातावरण में 13 लाख से अधिक किलोग्राम कार्बन का योगदान कर रहा है, जो कि पर्यावरण में 300 वर्षों तक मौजूद रहेगा। इससे निपटने के लिए हमें कुछ बुनियादी नियम स्थापित करने होंगे जैसे कि हमें अपनी खपत को सीमित करने के साथ-साथ अपने उत्पादन को स्थानीय बनाना चाहिए। इन सरल नियमों का पालन करने से व्यक्तियों और देशों के बीच असमानता और संघर्ष को कम करने में मदद मिलेगी।