रिपोर्ट- विश्वजीत चटर्जी।
लोयाबाद : धन से आबाद धनबाद 65 साल का बुजुर्ग हो गया। 1 नवम्बर’1956 को धनबाद एक जिला के रूप में अस्तित्व में आया था। उसी साल 24 अक्टूबर को राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिश पर धनबाद को जिला बनाने की अधिसूचना जारी हुई थी तथा 1 नवम्बर से मानभूम से अलग होकर धनबाद जिला बना था।
मानभूम टूटकर पुरुलिया बंगाल चला गया था।धनबाद को भी बंगाल में मिलाने की कवायद शुरू हो गई थी।इलाके में बांग्लाभाषियों की बहुलता थी।पणिक्कर कमीशन के पणिक्कर साहब ने चास रोड के इस पार् के इलाके को धनबाद में रखा जहां की महिलाएं उलू ध्वनि के बारे में नहीं बता पाईं(उलू ध्वनि शुभ कार्यों में महिलाओं द्वारा मुंह से निकाली जानेवाली एक खास आवाज़ है)।
65 साल की उम्र में धनबाद की बुढ़ी हड्डियां जवाब देने लगी।कभी सीना तानकर मुल्क के ख़ज़ाने को भरनेवाला धनबाद आज सहमा हुआ हुआ है।अपने कोयले से देश को रौशन करनेवाला कोयलांचल आज अंधकारमय भविष्य को लेकर डरा हुआ है।गन्दगी,बदबू,सीलन से तबाह धनबाद,दम तोड़ती अर्थव्यवस्था से कराहता कोयलांचल,जर्जर सड़कों के जख्मों से कराहता जिला…..धूल, धूंआ की धरती नज़र धुंधलाती जा रही है।कमज़ोर नज़र से जो भविष्य दिख रहा है वह बेहद खौफनाक है।धनबाद में तैयार हो रही ढहती हुई इमारत का नक्शा।
पांच दशक पहले तक देश की ज़रूरत का 52 प्रतिशत कोयला धनबाद देता था।मुल्क को कुल 39.28 मिलियन टन कोयले की ज़रूरत होती थी।अकेले धनबाद देता था 20.8 मिलियन टन कोयला।आज स्थिति उलट गई है।धनबाद के सार्वजनिक कोयला उद्दोग का भविष्य कथित आउटसोर्सिंग पर टिक गया है।देश की कोयला राजधानी धनबाद की पूंजी आज सिर्फ कोकिंग कोल है।एक तरह से सोना है।जिसकी लूट मची हुई है।
देश के अन्य इलाके धनबाद से अधिक कोयला राष्ट्र को दे रहा है।कभी डेढ़ लाख के असपास धनबाद में कोयला मज़दूर हुआ करते थे जो अब हज़ारों में आकर सिमट गया है।खान सुरक्षा की सबसे बड़ी एजेंसी डीजीएमएस अर्थात खान सुरक्षा महानिदेशालय धनबाद में है लेकिन चासनाला, गज़लीटांड,बागडिगी,नागदा…जैसी घटनाओं ने सुरक्षा-व्यवस्था को तार तार कर दिया है।टिस्को,इस्को सभी का हाल पहले जैसा नहीं है।सार्वजनिक लेड स्मेल्टर हिंदुस्तान जिंक बन्द हो चुका है।सिंदरी खाद कारखाना अतीत की कहानी बन चुका है।
कुमारधुबी इंजीनियरिंग वर्क्स,मेमको,हैरी,करम चंद थापर केसीटी का भग्नावशेष भी मौजूद नहीं है।कभी इसके नाम पर थापर नगर का जलवा था।कर्णपुरा का रेडियो व बिजली स्वीच का कारखाना भी दम तोड़ चुका है।फायर ब्रिक्स फैक्ट्री भी ध्वस्त हो चुकी है।कोल टार, सॉफ्ट कोक,धान मिल,बीड़ी उद्दोग,साबुन के कारखाने… सबकुछ अतीत के पन्नों में सिमट गये हैं।
एक तरफ जहां धनबाद ये सारे चौतरफा हमला झेल रहा है उस समय आउटसोर्सिंग कोढ़ में खाज की तरह सामने आया है।इसने कोयलांचल को बारूद के ढेर पर खड़ा कर दिया है।कायदे कानून की धज्जियां उड़ाकर जल-जंगल को भी उजाड़े जाने लगा है। लाइफलाइन दामोदर नाले का रूप ले चुका है। भयावह प्रदूषण की चपेट में है यह नदी।अवैज्ञानिक खनन ने खोदो,कतरी, कुमारीजोड़, चितकारी,कारी को लील चुका है।
झरिया जो कभी विश्व के मानचित्र में जगह बनाया था वह विश्व के सबसे बड़े विस्थापन की बाट जोह रहा है।लोग ज़मींदोज़ हो रहे हैं और विज्ञान-तकनीकी का दम्भ भरनेवाले लोग ज़िंदा कौन कहे लाश तक नहीं निकाल पा रहे।कतरास-सिजुआ व करकेन्द-केंदुआ भी संकट के दौर से गुज़र रहे हैं। बंदी और तबाही का यह क्रम जारी है।अर्थव्यवस्था की रीढ़ समझे जानेवाले गुजराती और मारवाड़ी लगातार झरिया-कतरास छोड़कर जा रहे हैं।
एक वक्त था जब धनबाद के दानवीरों ने बिना किसी स्वार्थ और जय-जय के कॉलेज,स्कूल,धर्मशाला व गौशाला का तांता लगा दिया था।आज के रहनुमा एक भी मिसाल वह भी सरकारी धन से नहीं दिखा पाएंगे जिससे आनेवाली पीढ़ी गर्व बोध कर सके।
धनबाद का नाम कभी धान बाइद था।बाईद खेतों के कारण शायद यह नाम पड़ा था।आईसीएस लुबी साहब ने इसका नाम बाईद से बदलकर बाद अर्थात धनबाद किया।आज धनबाद का चेहरा विकृत हो चुका है।पत्थरों का पहाड़,उखड़ खाबड़ रास्ते,गन्दगी,प्रदूषण, अंधेरा, खतरा, धनबाद आज तबाह है।कभी मिलेनियम सिटी बनाने का सपना जिसे दिखाया जाता था वह अब खंडहर में तब्दील होता जा रहा है।
काश!धनबाद में रेलबन्दी के कारण पीएमओ बैठक न कर कोयलांचल को बेहतर बनाने के लिए कदम उठाता।धनबाद की बुढ़ी हड्डियों से कोई ऐसा अस्त्र बनाता जिससे कोयलांचल का स्याह अंधेरा मिट जाता। रौशन हो उठता यह धरती।सवाल बनकर टपक रहे आंसू और जवाब देनेवाले सवालों की सलीब पर टँगते जा रहे हैं।