अमित कुमार माली
केरेडारी प्रखंड क्षेत्र में कोविड महामारी का प्रकोप कम होने और प्रशासन के निर्देशानुसार दुर्गा पूजा करने की अनुमति के बाद भक्तों में खुशी की लहर दिखी,और पंडाल सजने लगे है। समिति के लोग स्वत:विगत वर्षो की भांति इस बार भी कुछ हल्के में ही पंडाल बना रहे है।बताते चले कि केरेडारी प्रखंड में दुर्गापूजा का इतिहास 90 वर्ष पुराना है।कहा जाता है कि केरेडारी प्रखंड में पहली बार जब दुर्गापूजा आरंभ की गई थी उस समय दुर्गामंडप खपरैल का था। उस समय पूजा करने की पद्धति दूसरी थी। जो अब धीरे-धीरे परिवर्तित होती जा रही है।दुर्गापूजा सबसे पहले प्रखंड के चटटीबारीयातु गांव के स्व. बैजू साव, कुंवर साव ने ग्रामीणों की मदद से वर्ष 1925 में दुर्गा पूजा की शुरूआत की। वर्ष 1930 में कंडाबेर मां अष्टभूजी के गर्भ गृह में कलश स्थापना कर 90 वर्षीय देवदत मिश्र के पिता भागी मिश्र द्वारा पूजा प्रारंभ किया गया था।
ढोलक, घंटी, मंजिरा, झांझर की जगह अब फिल्मी गीत और डीजे की तेज धुनों ने ले ली है।
1948 में पहरा गांव में सकलदेव सिंह ने मुख्य चौक पर वर्ष 1951 में मुरलीधर दूबे, चंद्रदेव तिवारी तथा बासुदेव हलवाई के द्वारा दुर्गापूजा की शुरुआत की गई थी। 1965 में नागेश्वर महतो ने ग्रामीणों के सहयोग से बारीयातु गांव में मां की पूजा अचर्ना शुरू की थी। 1971 में र्गीकला चौक में मोहन महतो, चंद्रदेव गिरी ने पूजा शुरू किया। 1987 में केरेडारी के पचड़ा गांव में स्व. बुधलाल साव, बासुदेव पासवान ने गांव से चंदा कर पूजा प्रारंभ की थी।
वहीं 2004 में बुण्डू गांव में देवदत मिश्र आदि ग्रामीणों ने तथा 2005 में बेलतू गांव में संरपच नकुल, और बलदेव साव, ने मिलकर शुरू किया। जबकि 2008 से चट्टीपेटो गांव में प्रीतम साव, महावीर साव, दशरथ साव ने मां दुर्गे की पूजा शुरू की। 2021 में ग्राम जोरदाग और सलगा में दुर्गा पूजा गांव के ग्रामीणों की मदद से किया जा रहा है।