हजारीबाग: संत विनोबा भावे की कर्मस्थली रहा है हजारीबाग । इस क्षेत्र में भूदान की अलख जगाई की इस संत ने। पर 17 सितंबर 1992 को विनोबा भावे विश्वविद्यालय की स्थापना की गई जो आज की सुबह वसंत में प्रवेश कर रहा है। भूदान के आयामों को विस्तार देते हुए शिक्षा दान करने की परंपरा की शुरुआत कर इसके संस्थापकों ने अमिट छाप छोड़ी है।
विश्वविद्यालय वर्तमान में जहां स्थापित है उसी के पूरब दिशा में लगभग 2 किलोमीटर की दूरी पर कारकरी गांव में भूदान का कार्यालय अवस्थित है जो भूदान और ज्ञान नाम के बीच संतुलन बनाए हुए हैं।
विश्वविद्यालय के प्रथम कुलपति डॉ विनोदिनी तरवे थी। उस काल में एकीकृत बिहार के हम अंग थे। बिहार की राजधानी पटना से मात्र एक कागज का टुकड़ा लेकर वे हजारीबाग पहुंची थी। कागज का टुकड़ा आदेश था या अध्यादेश या फिर अधिसूचना यह तो बाद की बात है लेकिन उसके आधार पर इस विश्वविद्यालय की नींव रखी गई जो आज अपना विशाल आकार ले चुका है।
डॉक्टर के के नाग ,डॉ एम एल दास, प्रोफेसर एनके चटर्जी ,डॉक्टर बहुरा एका, डॉक्टर एमपी सिंह ,डॉ अरविंद कुमार डॉ आर एन भगत ,डॉ गुरदीप सिंह, डॉ रमेश शरण जैसे प्रकांड विद्वान, अनुभवी और ऊर्जावान व्यक्ति इस विश्वविद्यालय के कुलपति पद को सुशोभित कर चुके हैं। डॉक्टर नितिन मदन कुलकर्णी और एस एस मीना जैसे प्रशासनिक अधिकारी की भी सेवा का लाभ इस विश्वविद्यालय को थोड़ी काल के लिए मिल चुका है।
वर्तमान कुलपति डॉ मुकुल नारायण देव की अगुवाई में विनोबा भावे विश्वविद्यालय स्थापना काल के तीसरे वर्ष में प्रवेश कर रहा है। डॉक्टर देव प्रख्यात वैज्ञानिक रहे हैं जिनके मार्गदर्शन में कई नए विषयों की पढ़ाई शुरू की गई है। इसके साथ ही और भी शोध की दिशा में नए प्रयास किए जा रहे हैं ताकि विश्वविद्यालय की गुणवत्ता बेहतर बन सके और छात्रों का स्वर्णिम भविष्य और भी उज्जवल हो सके।
वर्तमान में इस विश्वविद्यालय के क्षेत्राधिकार में 9अंगीभूत, कॉलेज 19 स्नातकोत्तर विभाग, एक इंजीनियरिंग कॉलेज, एक मेडिकल कॉलेज, पांच B.Ed कॉलेज समेत 24 संबद्ध बीएड कॉलेज संचालित है और कई अस्थाई संबद्ध डिग्री कॉलेज भी इस विश्वविद्यालय के अंग हैं। कोरोना काल में भी विश्वविद्यालय की गति कभी सुस्त नहीं हुई बल्कि प्रगति के पथ पर प्रशस्त होते रही है जिसकी वजह है कि आज पूरी प्रदेश में ही नहीं बल्कि देश में इसकी अलग पहचान है।
वर्तमान कुलपति डॉ मुकुल नारायण देव के धैर्य ,संयम, आत्मविश्वास तथा समर्पण की भावना को मूल मंत्र मानकर पूरे विश्व विद्यालय परिवार के साथ कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ने की मुहिम में जुटे हैं।