प. दीनदयाल उपाध्याय जयंती आज -हाथ में पांच रुपए का नोट पकड़े पटरी के पास मिली थी लाश, जानिए ट्रेन के आखिरी सफर में कौन थे साथ, सीबीआई निदेशक लोबो को पूरी नहीं करने दी गई थी जांच

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भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्य दीनदयाल उपाध्याय की आज जयंती है। उनका जन्म 25 सितंबर 1916 में हुआ था। 1967 में जनसंघ की कमान संभालने वाले दीनदयाल उपाध्याय की अगले साल ही, 10 फरवरी 1968 को रहस्यमयी परिस्थितियों में मौत हो गई थी।

इस घटना ने पूरे देश को चकित कर दिया। बता दें कि दीनदयाल सियालदाह एक्सप्रेस से लखनऊ से पटना जा रहे थे। रात करीब 2 बजे, ट्रेन मुगलसराय स्टेशन पहुंची, वो ट्रेन में मौजूद नहीं थे। स्टेशन के नजदीक ही उनकी लाश पड़ी मिली, उस दौरान उनके हाथ में 5 रुपये का नोट भी था। हालांकि आज तक यह पता नहीं चल सका कि उनकी मौत का असली कारण क्या था।

बता दें कि दीनदयाल उपाध्याय की मौत को लेकर तत्कालीन सरकार ने इसकी जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को सौंपी थी। उस वक्त जॉन लोबो CBI सीबीआई निदेशक थे। जिनकी छवि एक ईमानदार अधिकारी के तौर थी। जांच मिलते ही लोबो अपनी टीम के साथ मुग़लसराय स्टेशन(अब पंडित दीनदयाल उपाध्याय रेलवे स्टेशन) गए।

वहां लोबो इस मामले की जांच पूरी कर पाते, इससे पहले ही उन्हें वापस दिल्ली बुला लिया गया। इसकी वजह से आरोप लगे कि दीनदयाल उपाध्याय की मौत मामले की जांच की दिशा बदलने का प्रयास किया गया। बाद में सीबीआई की तरफ से इस मामले में निष्कर्ष रिपोर्ट दाखिल की गई कि, दीनदयाल उपाध्याय की हत्या मामूली चोरों ने की, और उनका मकसद चोरी करना था।

इस रिपोर्ट के आधार पर 9 जून 1969 को एक अदालत ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि, ‘इस मामले में अभी भी वास्तविक सच्चाई खोजी जानी है।’ इस बयान के बाद से सियासी हलचल मच गई। जिसके बाद इंदिरा गांधी सरकार ने एक जांच आयोग गठित इस मामले को सौंपा। 23 अक्टूबर 1969 को गठित इस कमेटी के अध्यक्ष वाईवी चंद्रचूड़ थे। पांच महीने बाद इस आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि, दीनदयाल उपाध्याय की मौत रहस्यमयी परिस्थितियों में हुई।

सफर में कौन-कौन थे साथ: पटना जाते वक्त दीनदयाल उपाध्याय फर्स्ट क्लास में सफर कर रहे थे। बोगी में तीन कूपे थे- ए, बी और सी। ए में चार बर्थ, बी में दो और सी में चार बर्थ थे। जिसमें उनकी बर्थ कूप ए में थी लेकिन उन्होंने इसे कूप बी के लिए बदला था। उन्होंने विधान परिषद सदस्य गौरी शंकर राय के साथ अपनी सीट की अदला बदली की थी।

वहीं कूप ए में सरकारी ऑफिसर एम.पी. सिंह भी सफर कर रहे थे। इसके अलावा मेजर एस.एल. शर्मा का आरक्षण कूप सी के लिए आरक्षण था, लेकिन उन्होंने इसमें यात्रा ना कर ट्रेन के सेवा कोच में यात्रा की। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि मेजर शर्मा का नाम एक बार नहीं, बल्कि दो बार गलत लिखा गया था, यहां तक कि उनका टिकट नंबर भी गलत लिखा गया था।

आयोग ने कहा: ‘मुगलसराय में जो कुछ भी हुई वो किसी उपन्यास के जैसा रहा। मामले को लेकर कई लोगों का व्यवहार सामान्य नहीं था। जिससे संदेह पैदा होता है। ऐसी परिस्थितियों में सामान्य व्यवहार की उम्मीद की जाती, लेकिन मुग़लसराय की कुछ घटनाओं का ताना बाना अजीब तरह से बुना गया है।’ रिपोर्ट में आगे कहा गया, ‘इस मामले में संदिग्ध परिस्थितियों का अंत नहीं है। इसकी वजह से धुंधलापन पैदा होता है, जिसका मक़सद असली सच को छिपाने जैसा है।

रिपोर्ट में कहा गया कि, शव के पास से वैध टिकट का मिलना, जिससे उनकी पहचान हो सके, शव को एक अस्थायी तरीके से रखा जाना, जिस कंपार्टमेंट में वो सफर कर रहे थे उसमें फिनायल की बोतल मिलना, ऐसे और भी कई सवाल परिस्थितियों को असामान्य बनाते हैं।

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