नई दिल्ली : कोरोना महामारी के खिलाफ लड़ाई में दुनियाभर में टीकाकरण अभियान जारी है। देश में गत जनवरी से यह अभियान लगातार चलाया जा रहा है। हालांकि, इतनी अधिक संख्या में टीके लगाए जाने के बीच यह खबर भी आई है कि कुछ जगहों पर नकली यानी फर्जी टीके भी लगाए जा रहे हैं। यही नहीं, अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी फर्जी टीकों के कारोबार का खुलासा हो चुका है।
कुछ दिन पहले ही दक्षिण-पूर्व एशिया और अफ्रीका में नकली कोविशील्ड मिली है। इसके बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ ने फर्जी टीकों को लेकर सतर्क किया है। इस पूरे मामले के सामने आने के बाद अब भारत में केंद्र सरकार ने भी देश में राज्यों के लिए ऐसे मानक बताए हैं, जिनके आधार पर यह पता लगाया जा सकता है कि आपको दी जा रही वैक्सीन असली या फिर नकली।
केंद्र सरकार ने इस बारे में सभी राज्यों को पत्र लिखकर जानकारी दी है। इसमें राज्यों को कोवैक्सीन, कोविशील्ड और स्पूतनिक-वी टीकों से जुड़ी सभी जानकारी दी गई है। इससे यह स्पष्ट किया जा सकेगा कि नागरिकों को लगाए जा रहे टीके नकली तो नहीं है। बता दें कि देश में इस समय तीन इन तीन टीकों के जरिए टीकाकरण अभियान चल रहा है।
केंद्र ने राज्यों को एक असली वैक्सीन की पहचान से जुड़ी जानकारी देते हुए बताया है कि कैसे असली वैक्सीन को पहचानें। इसमें अंतर पहचानने के लिए कोविशील्ड, कोवैक्सीन और स्पूतनिक-वी तीनों वैक्सीन पर लेबल, उसके रंग, ब्रांड का नाम आदि जानकारी शेयर की गई है। केंद्र ने इस बारे में सभी पैमाने और मानक भी विस्तृत तौर पर बताए हैं।
कोविशील्ड की पहचान
केंद्र सरकार ने कोविशील्ड के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि इसमें SII का प्रॉडक्ट लेबल लगा है। यह लेबल गहरे हरे रंग में होगा। ब्रांड का नाम ट्रेड मार्क के साथ अंग्रेजी में Covishield (कोविशील्ड) लिखा होगा। वहीं, इसके जेनेरिक का नाम टेक्स्ट फॉन्ट बोल्ड अक्षरों में लिखा होगा। इसके ऊपर सीजीएस नाट फॉर सेल ओवर प्रिंट होगा।
कोवैक्सीन की पहचान
इस वैक्सीन के लेबल इनविजिबल यानी अदृश्य यूवी हेलिक्स लिखा होगा और इसे सिर्फ UV लाइट में ही देखा जा सकता है। लेबल क्लेम डॉट्स के बीच छोटे अक्षरों में छिपा टेक्स्ट लिखा है, जिसमें अंग्रेजी में Covaxin (कोवैक्सीन) लिखा होगा। कोवैक्सीन में एक्स अक्षर दो रंगों में हैं और इसे ग्रीन फॉयल इफेक्ट कहते हैं।
स्पूतनिक-वी की पहचान
स्पूतनिक-वी वैक्सीन रूस की दो अलग-अलग प्लॉन्ट से आयात की जा रही है। ऐसे में इसके दोनों लेबल भी कुछ अलग हैं। हालांकि, सभी जानकारी और डिजाइन एक जैसा ही है। केवल मैन्युफेक्चरर का नाम अलग है। अभी तक जितनी भी वैक्सीन आयात की गई है, उनमें से सिर्फ पांच लाख एम्पूल के पैकेट पर ही अंग्रेजी में लेबल लिखा है। इसके अलावा बाकि पैकेटों में यह रूसी भाषा में ही लिखा है।