ममता बनर्जी सरकार पर लगा ‘निर्भया फंड’ गबन का आरोप, कलकत्ता हाईकोर्ट ने मांगा जवाब

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केंद्र सरकार की ओर से देशभर के महानगरों में महिलाओं की सुरक्षा के लिए सीसीटीवी कैमरा (CCTV Camera) इंस्टॉल करने हेतु आवंटित धनराशि गबन का आरोप पश्चिम बंगाल सरकार पर लगा है. इससे संबंधित एक मामले पर सुनवाई करते हुए मंगलवार को हाईकोर्ट (Calcutta High Court) ने राज्य सरकार से हलफनामा के जरिए जवाब मांगा है. 15 फरवरी को अगली सुनवाई होनी है. दरअसल 2012 में दिल्ली के बर्बर निर्भया कांड के बाद देशभर के महानगरों में महिलाओं की सुरक्षा के लिए केंद्र सरकार ने निर्भया फंड का गठन किया था. इसके तहत 2016 में राजधानी कोलकाता समेत देशभर के सभी महानगरों में सीसीटीवी कैमरा इंस्टॉल करने के लिए धनराशि का आवंटन हुआ था.

पश्चिम बंगाल सरकार को 181 करोड़ से थोड़ी अधिक धनराशि केंद्र ने दी थी. आरोप है कि इस राशि का इस्तेमाल सीसीटीवी कैमरा इंस्टॉल करने के लिए नहीं किया गया है. इसी के खिलाफ अधिवक्ता सायनज्योति मुखर्जी ने हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका लगाई थी जिस पर मंगलवार को सुनवाई हुई.

कलकत्ता हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से मांगा हलफनामा

राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता सौमेंद्र नाथ मुखर्जी ने बताया कि बंगाल में निर्भया फंड का बखूबी इस्तेमाल हुआ है. पूरे कोलकाता में 1020 सीसीटीवी कैमरे इंस्टॉल किए गए हैं और कैमरा को इंस्टॉल करने की प्रक्रिया चल रही है. उन्होंने कहा कि सॉफ्टवेयर कंपनी वेबेल को सीसीटीवी कैमरा इंस्टॉल करने का ठेका दिया गया है. उम्मीद है इस साल के मध्य तक पूरे शहर में कैमरा इंस्टॉल करने का काम पूरा हो जाएगा. इसके बाद कोर्ट ने कहा कि कहां कितनी धनराशि खर्च हुई है इससे संबंधित पूरी जानकारी हलफनामा के जरिए राज्य सरकार जमा करें.

सीसीटीवी लगाने में लगा है भ्रष्टाचार का आरोप

सायोनी के मुताबिक सबसे पहले कोलकाता पुलिस को सीसीटीवी कैमरे लगाने की जिम्मेवारी दी गई थी लेकिन जब शहर की पुलिस इसमें व्यर्थ रही तो राज्य सरकार ने साफ्टवेयर कंपनी वेवेल को कैमरे इंस्टाल करने की जिम्मेवारी दी. उस समय पता चला कि वेबेल को कैमरा इंस्टाल करने का ठेका देने में भी बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हुआ था जिसकी वजह से यह काम रुक गया था. टेंडर में भ्रष्टाचार पर कोई कार्रवाई नहीं की गई. आरोप है कि कैमरा इंस्टाल करने का सारा टेंडर केवल दो कंपनियों को दिया गया था. इसी संबंध में उचित जांच और केंद्र की ओर से आवंटित धनराशि के बारे में पता लगाने के लिए हाई कोर्ट से हस्तक्षेप की मांग की गई थी.

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