रामदेव की पतंजलि पर अवैध विज्ञापनों से दिल-लिवर की बीमारी से जुड़े प्रोडक्ट्स को बढ़ावा देने का आरोप, केंद्र ने कार्रवाई करने को कहा

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योग गुरु बाबा रामदेव की पतंजलि के अवैध विज्ञापनों के जरिए दिल-लिवर की बीमारी से जुड़े प्रोडक्ट्स को बढ़ावा देने के खिलाफ आवश्यक कार्रवाई करने के निर्देश दिए गए हैं। केंद्र ने स्टेट ऑथॉरिटीज को विज्ञापनों की जांच कर आवश्यक कार्रवाई करने को कहा है। दरअसल, आयुष मंत्रालय को कुछ शिकायतें मिली थीं, जिनमें कंपनी की तरफ से कुछ उत्पादों को लेकर ऐसे विज्ञापन दिखाए गए हैं जो दिल और लिवर की बीमारी को जल्द ठीक करने का दावा करते हैं।

शिकायत में रामदेव की पतंजलि के उत्पादों- लिपिडोम, लिवोग्रिट और लिवामृत के विज्ञापनों को वापस लेने की मांग की गई है। दवाओं को लेकर शिकायत मिली थी कि वे ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज एक्ट (आपत्तिजनक विज्ञापन) 1954 का उल्लंघन करते हैं।

मंगलवार (19 अप्रैल, 2022) को केरल के नेत्र रोग विशेषज्ञ के.वी. बाबू ने सूचना का अधिकार अधिनियम के माध्यम से शिकायत दर्ज की थी। इसके बाद मंत्रालय ने उत्तराखंड के अधिकारियों को शिकायकर्ता की ओर से दिए गए दस्तावेजों के आधार पर जांच करने की सलाह दी है। बाबू ने फरवरी में केंद्र के शीर्ष दवा प्राधिकरण से शिकायत की थी कि देहरादून स्थित पतंजलि नेअपने विज्ञापनों में दावा किया है कि लिपिडोम एक हफ्ते में कोलेस्ट्रॉल को कम करता है और लोगों को हृदय की समस्याओं और रक्तचाप से बचाता है।

शिकायतकर्ता ने कहा कि विज्ञापनों में ड्रग एंड मैजिक रेमेडीज एक्ट की धारा 3 का उल्लंघन किया गया है। यह धारा हृदय रोग और उच्च या निम्न रक्तचाप सहित कई स्वास्थ्य विकारों के लिए किसी भी उपचार के विज्ञापन पर प्रतिबंध लगाती है। इसके बाद शिकायत को आयुष मंत्रालय को भेज दिया गया, जो पहले से ही लिपिडोम के विज्ञापनों को लेकर जांच कर रहा है।

आयुष मंत्रालय ने कहा कि नेशनल फार्माकोविजिलेंस सेंटर ने अन्य पतंजलि उत्पादों के विज्ञापनों पर ध्यान दिया था और मंत्रालय ने कर्नाटक और राजस्थान में राज्य लाइसेंसिंग अधिकारियों को इसी तरह के निर्देश जारी किए थे।

पतंजलि के विज्ञापनों में लिवोग्रिट और लिवामृत से लिवर और पाचन तंत्र से संबंधित समस्याओं में तत्काल लाभ का दावा किया गया है, जबकि ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज एक्ट लिवर विकारों के इलाज के लिए विज्ञापनों पर रोक लगाता है।

बाबू ने बुधवार को कहा, “क्या इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि ये दवाएं प्रभावी हैं। जैसा कि विज्ञापनों में दावा किया गया है।” उन्होंने कहा कि ये विज्ञापन कई शहरों के अखबारों में छपे हैं। भारत के चिकित्सा समुदाय ने पिछले साल पतंजलि आयुर्वेद पर यह दावा करके जनता को गुमराह करने का प्रयास करने का आरोप लगाया था कि उसने अपने हर्बल कॉकटेल को कोविड -19 के लिए पहली साक्ष्य-आधारित दवा बताया था। हालांकि इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं की गई क्योंकि कोविड-19 उन बीमारियों में शामिल नहीं था, जिनके उपचार का विज्ञापन नहीं किया जा सकता।

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