हिंसा पर काबू पाने के लिए पुलिस ने एक्शन लिया और भीड़ तितर-बितर किया. इस बीच जलाए गए दोनों वाहनों के ड्राइवर भीड़ से खुद को बचाते हुए भागने में सफल रहे. कोई हताहत नहीं हुआ है. इधर, इम्फाल पश्चिम जिले के यिंगांगपोकपी के पास लाईकोट में शुक्रवार देर रात दो समुदायों के बीच रुक-रुक कर गोलीबारी हुई है. ये घटनाएं उस समय सामने आई हैं जब बिष्णुपुर जिले में अलग-अलग स्थानों पर मणिपुर पुलिस कमांडो सहित चार लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी गई और कई अन्य घायल हो गए.
बीती शाम को मोइरांग तुरेल मापन में संदिग्ध आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में पुलिसकर्मी की मौत हो गई थी, जबकि तीन अन्य की जान तड़के कांगवई, सोंगडो और अवांग लेखई गांवों में चली गई थी. ये सभी बिष्णुपुर और चुराचांदपुर जिलों की सीमा पर मौजूद थे. अधिकारियों का कहना है कि सेना और असम राइफल्स के जवान को स्थिति से निपटने के लिए शुक्रवार रात सोंगडो भेजा गया.
मणिपुर हिंसा में 100 से अधिक लोगों की हो चुकी मौत
बताया गया है कि 3 मई को राज्य में जातीय हिंसा भड़कने के बाद से 100 से अधिक लोगों की जान चली गई है और 3,000 से अधिक घायल हुए हैं. ये हिंसा उस समय शुरू हुई जब मैतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति (एसटी) दर्जे की मांग के विरोध में पहाड़ी जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ आयोजित किया गया था. हिंसा को नियंत्रित करने और राज्य में सामान्य स्थिति वापस लाने के लिए मणिपुर पुलिस के अलावा लगभग 40,000 केंद्रीय सुरक्षा कर्मियों को तैनात किया गया है. मणिपुर की आबादी में मैतेई समुदाय के लोगों की संख्या लगभग 53 फीसदी बताई जा रही है और वे ज्यादातर इम्फाल घाटी में रहते हैं. जनजातीय नागा और कुकी समुदाय के लोग 40 फीसदी हैं और ये सभी पहाड़ी जिलों में रहते हैं.