कई महीनों से जातीय हिंसा के हालात से गुजर रहे मणिपुर में गुरुवार को स्थिति फिर बिगड़ गई। राज्य के विष्णुपुर में प्रदर्शन कर रहे मैतेई समुदाय के लोगों और पुलिस के बीच जमकर झड़प हुई। प्रदर्शनकारियों को खदेड़ने के लिए पुलिस ने हवाई फायरिंग की और आंसू गैस के गोले छोड़े। इस दौरान प्रदर्शनकारियों ने सुरक्षा बलों पर पथराव किया। झड़प में कई लोग घायल हो गये। पुलिस ने कुछ प्रदर्शनकारियों को हिरासत में भी लिया है।
मणिपुर में फिर हिंसा
अब जानकारी के लिए बता दें कि पिछले तीन महीने से मणिपुर ऐसे ही जल रहा है। 150 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है, कई घायल हैं,लेकिन अभी तक इस हिंसा पर रोक नहीं लग पाई है। सुप्रीम कोर्ट तक इस मामले में सुनवाई कर रहा है, सरकार को फटकार भी लगा चुका है, लेकिन जमीन पर स्थिति ज्यादा नहीं सुधरी है। इसके उलट एक बार फिर हिंसक झड़क ने जमीन पर तनाव बढ़ाने का काम कर दिया है।
वैसे कुछ दिन पहले विपक्षी गठबंधन इंडिया के नेता भी मणिपुर दौरे पर गए थे। उनकी तरफ से भी हिंसा प्रभावित जिलों का जायजा लिया गया था, पीड़ितों से मुलाकात भी की गई थी। ये अलग बात रही कि उसे केंद्र सरकार और बीजेपी ने राजनीति से प्रेरित बता दिया। अभी के लिए जमीन पर हिंसा नहीं रुक पाई है, तमाम प्रयासों के बावजूद भी बवाल की स्थिति बनी हुई है। सरकार कोशिश पूरी कर रही है कि एक बार फिर सामान्य हालातों की तरफ बढ़ा जाए, लेकिन अभी राह मुश्किल चल रही है।
मणिपुर में कैसे बिगड़े हालात?
जब से मणिपुर में दो महिलाओं का एक वीडियो वायरल हुआ है, हालात और ज्यादा संवेदनशील बन गए हैं। उसी वजह से हिंसा और ज्यादा विस्फोटक हुई है। अब हिंसा के कारण तो कई बताए जा रहे हैं, लेकिन जड़ कुछ और है। असल में मणिपुर में तीन समुदाय सक्रिय हैं- इसमें दो पहाड़ों पर बसे हैं तो एक घाटी में रहता है। मैतेई हिंदू समुदाय है और 53 फीसदी के करीब है जो घाटी में रहता है। वहीं दो और समुदाय हैं- नागा और कुकी, ये दोनों ही आदिवासी समाज से आते हैं और पहाड़ों में बसे हुए हैं। अब मणिपुर का एक कानून है, जो कहता है कि मैतेई समुदाय सिर्फ घाटी में रह सकते हैं और उन्हें पहाड़ी क्षेत्र में जमीन खरीदने का कोई अधिकार नहीं होगा। ये समुदाय चाहता जरूर है कि इसे अनुसूचित जाति का दर्जा मिले, लेकिन अभी तक ऐसा हुआ नहीं है।
हाल ही में हाई कोर्ट ने एक टिप्पणी में कहा था कि राज्य सरकार को मैतेई समुदाय की इस मांग पर विचार करना चाहिए। उसके बाद से राज्य की सियासत में तनाव है और विरोध प्रदर्शन देखने को मिल रहा है। ऐसे ही एक आदिवासी मार्च के दौरान बवाल हो गया और देखते ही देखते हिंसा भड़क गई।