गुजरात सरकार राज्य में समान नागरिक संहिता (यूनिफॉर्म सिविल कोड) लागू कर सकती है। इसे लागू करने के सभी पहलुओं का मूल्यांकन करने के लिए उत्तराखंड की तरह ही सरकार एक सेवानिवृत्त उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की सीमित गठित कर सकती है। समाचार एजेंसी एएनआई ने सूत्रों के हवाले से बताया कि सरकार जल्द ही इस संबंध में प्रस्ताव पेश कर सकती है।
अगर सरकार ऐसा करती है तो यह गुजरात चुनाव से पहले बीजेपी का एक बड़ा दांव होगा। उत्तराखंड सरकार पहले ही ऐसी कमेटी का गठन कर चुकी है। बता दें कि आज गुजरात सरकार की कैबिनेट बैठक बुलाई गई है और इसी बैठक में उत्तराखंड की तर्ज पर हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में एक समिति गठित करने का प्रस्ताव पेश किया जाएगा। दोपहर तीन बजे गुजरात के गृहमंत्री हर्ष सांघवी इस बारे में विस्तार से जानकारी देंगे।
बता दें कि यूनिफॉर्म सिविल कोड हमेशा से बीजेपी के एजेंडे में रहा है। 1989 में पहली बार बीजेपी ने अपने घोषणा पत्र में यूसीसी को शामिल किया था। उसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी ने समान नागरिक संहिता को शामिल किया था। बीजेपी का मानना है कि जब तक समान नागरिक संहिता लागू नहीं होती, तब तक लैंगिक समानता देश में नहीं आ सकती है।
क्या है यूसीसी?
यूनिफॉर्म सिविल कोड सबको बराबरी का अधिकार देता है। अगर यह लागू हो जाता है तो विवाह, तलाक, बच्चे गोद लेना और संपत्ति के बंटवारे ऐसे विषयों में सभी नागरिकों के लिए एक जैसे नियम लागू हो जाएंगे। यानी देश में रहने वाले हर एक नागरिक के लिए एक समान कानून होगा, चाहे वह किसी भी जाति-धर्म का क्यों ना हो।
इसी वर्ष मई में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने समान नागरिक संहिता का ड्राफ्ट तैयार करने के लिए सुप्रीम कोर्ट की सेवानिवृत्त न्यायाधीश रंजना देसाई की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय विशेषज्ञ समिति का गठन किया था। इस समिति को छह माह के भीतर ड्राफ्ट तैयार करना था, जिसकी समय सीमा नवंबर में पूरी होने वाली है। समिति ने जनता से भी समान नागरिक संहिता पर सुझाव मांगे थे।