जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव करीब होने की अटकलों के बीच कांग्रेस को एक बड़ा झटका लगा है। राज्यसभा में विपक्ष के पूर्व नेता गुलाम नबी आजाद के करीबी माने जाने वाले कम से कम 20 वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं ने अपने-अपने पदों से इस्तीफा देते हुए पार्टी सुप्रीमो सोनिया गांधी को त्यागपत्र भेज दिया है। इस्तीफा देने वाले सभी लोग केंद्र शासित प्रदेश में पार्टी नेतृत्व में बदलाव की मांग कर रहे हैं। इनमें पूर्व मंत्री जीएम सरूरी, विकार रसूल और डॉ. मनोहर लाल शर्मा के अलावा जुगल किशोर शर्मा, गुलाम नबी मोंगा, नरेश गुप्ता, मोहम्मद अमीन भट, सुभाष गुप्ता (सभी पूर्व विधायक), प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष अनवर भट और कुलगाम जिला विकास परिषद सदस्य और पूर्व जिलाध्यक्ष अन्यातुल्ला राथर शामिल हैं।
उधर, यूपी में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले समाजवादी पार्टी को जोर का झटका देते हुए विधान परिषद सदस्य रविशंकर सिंह पप्पू, सीपी चंद, रमा निरंजन और नरेंद्र भाटी समेत छह लोगों ने बुधवार को बीजेपी का दामन थाम लिया है। प्रदेश भाजपा प्रवक्ता मनीष शुक्ला ने बताया कि सपा के विधान परिषद सदस्य रविशंकर सिंह पप्पू, नरेंद्र सिंह भाटी, सीपी चंद और रमा निरंजन ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सदस्यता ग्रहण कर ली है। इस मौके पर प्रदेश के दोनों उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और डॉक्टर दिनेश शर्मा तथा पार्टी प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह भी मौजूद थे।
जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस के बडगाम जिलाध्यक्ष जाहिद हसन जान, सीएम के पूर्व राजनीतिक सलाहकार मंजूर अहमद गनई, एआईसीसी सदस्य इंजीनियर मरूफ, पार्टी के एसटी सेल के उपाध्यक्ष चौधरी सोहत अली, पार्षद गौरव चोपड़ा, जिला महासचिव अश्विनी शर्मा भी इस्तीफा देने वालों में शामिल हैं।
संपर्क करने पर जीएन मोंगा और विकार रसूल ने पुष्टि की कि उन्होंने पार्टी अध्यक्ष को पत्र लिखकर केंद्र शासित प्रदेश में नेतृत्व बदलने की मांग की है। प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष जी ए मीर का नाम लिए बिना विकार रसूल ने कहा, “हमें बताया गया था कि उन्हें तीन साल की अवधि के लिए नियुक्त किया जा रहा है, लेकिन अब सात साल हो गए हैं। हालांकि, हमने आलाकमान से कहा है कि अगर जम्मू-कश्मीर में पार्टी नेतृत्व में कोई बदलाव नहीं हुआ तो हम किसी पार्टी का पद नहीं संभालेंगे।’ मनोहर लाल ने कहा कि यह पार्टी का आंतरिक मामला है और वह गुरुवार को कठुआ में अपनी बैठक के बाद इस मुद्दे पर बोलेंगे।
त्यागपत्र एआईसीसी अध्यक्ष सोनिया गांधी को भेजा गया है। इसकी काफी राहुल गांधी और जम्मू-कश्मीर के प्रभारी सचिव रजनी पाटिल को भेजी गई है। त्यागपत्र में इन नेताओं ने आरोप लगाया है कि मीर की अध्यक्षता में कांग्रेस एक विनाशकारी स्थिति की ओर बढ़ रही है और आज तक 200 से अधिक पूर्व मंत्रियों, विधायकों, एमएलसी, पीसीसी पदाधिकारियों, जिलाध्यक्षों और एआईसीसी सदस्यों सहित कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया है और अन्य दलों में शामिल हो गए हैं। कुछ अन्य लोग फिलहाल मौन हैं।
आजाद के इन वफादारों ने आगे आरोप लगाया है कि “कुछ बेईमान चापलूसों ने पीसीसी के कामकाज पर कब्जा कर लिया है और उसे हाईजैक कर लिया है। वरिष्ठ नेताओं और जिलों के मौजूदा विधायकों/एमएलसी के परामर्श के बिना पार्टी पदों का वितरण किया गया।
यह इंगित करते हुए कि कांग्रेस संसद, डीडीसी, बीडीसी, पंचायतों और शहरी स्थानीय निकायों सहित एक के बाद एक सभी चुनाव हार गई, और जम्मू-कश्मीर में एक भी परिषद नहीं बना सकी, इन नेताओं ने पार्टी आलाकमान को याद दिलाया है कि यहां तक कि जीए मीर भी अपने गृह निर्वाचन क्षेत्र में संयुक्त पीएजीडी उम्मीदवार के बावजूद खुद संसदीय चुनावों में और उनके बेटे को डीडीसी चुनावों में हार का सामना करना पड़ा।
विरोध करने वाले नेताओं ने कहा कि पार्टी का राजनीतिक दायरा दिन-ब-दिन सिकुड़ता जा रहा है। “हम पिछले एक साल से पार्टी नेतृत्व से मिलने के लिए अनुरोध कर रहे थे। अगस्त 2021 में श्रीनगर और जम्मू दोनों जगह राहुल गांधी की पहली यात्रा के दौरान भी मिलने के लिए समय देने का अनुरोध किया, लेकिन समय नहीं दिया गया। यह मामला रजनी पाटिल के संज्ञान में भी लाया गया था, लेकिन यह कहते हुए खेद है कि कोई ध्यान नहीं दिया गया।
दूसरी ओर, उन्होंने कहा, चुनावों की घोषणा किसी भी समय की जा सकती है। ऐसे में “जीए मीर के डिजिटल तंत्र के माध्यम से बने एक ध्वस्त और किराए के ढांचे में, अन्य लोग कब्जा करने की कोशिश कर रहे हैं। हम निराश हैं कि कोई भी जमीनी स्थिति की वास्तविक शिकायतों को सुनने के लिए तैयार नहीं है।
त्यागपत्र में उन्होंने लिखा, “पार्टी नेतृत्व द्वारा अपनाए गए इस शत्रुतापूर्ण रवैये के मद्देनजर, हमें पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा देने के लिए मजबूर और विवश किया गया है। ऐसे में सबसे विनम्रतापूर्वक अनुरोध किया जाता है कि कृपया हमारा इस्तीफा स्वीकार करें।”
हालांकि, पीसीसी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा कि ये नेता एक साल से अधिक समय से पार्टी की बैठकों में शामिल नहीं हो रहे थे और उनमें से एक करीब तीन महीने पहले कठुआ जिले में रजनी पाटिल के पार्टी कार्यक्रम में भी शामिल नहीं हुआ था।
पीसीसी पदाधिकारी ने कहा, “पार्टी आलाकमान ने उनके खिलाफ कार्रवाई शुरू की थी, उन्होंने कहा, इन विद्रोही नेताओं ने छह महीने पूर्व भी पार्टी अध्यक्ष को इसी तरह का पत्र लिखा था। अब यह सोचकर कि पार्टी की गतिविधियों और कार्यक्रमों के प्रति उदासीनता दिखाने के लिए उनके खिलाफ भी कार्रवाई हो सकती है, उन्होंने अब उस पत्र को फिर से जनता में प्रसारित किया है।”