सुपरटेक हुई दिवालिया, लगभग 25,000 होम बायर्स पर क्या होगा इसका असर

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दिल्ली एनसीआर की प्रमुख रियल एस्‍टेट कंपनी सुपरटेक (Supertech) एनसीएलटी के द्वारा दिवालिया (insolvent) घोषित हो गई है. दरअसल, नेशनल कंपनी ला ट्राइब्यूनल (NCLT) की दिल्ली बेंच में कर्ज न चुकाये जाने पर यूनियन बैंक ऑफ इंडिया ने कंपनी की इन्सॉल्वेंसी प्रक्रिया शुरू करने की अपील की थी जिसे बेंच ने मंजूर कर लिया है.

इसके साथ ही एनसीएलटी ने हितेश गोयल को इन्सॉल्वेंसी रिसोल्यूशन प्रोफेशनल यानी आईआरपी नियुक्त किया है. इस कदम से हजारों लोगों के लिये मुश्किल हो सकती है जिन्होंने डेवलपर के प्रोजेक्ट में घर बुक किये थे. लेकिन उन्हें अब तक अपना घर नहीं मिल सका है. ऐसे लोगों के लिये अपने घर का सपना और लंबा हो सकता है. एक अनुमान के मुताबिक इस से करीब 25 हजार ग्राहकों की मुश्किलें बढ़ सकती हैं.

25 हजार ग्राहकों पर पड़ सकता है फैसले का असर

मीडिया में आई खबरों के अनुसार एनसीएलटी के फैसले का 25 हजार ग्राहकों पर असर पड़ सकता है. इन लोगों ने सुपरटेक के विभिन्न प्रोजेक्ट में पैसा लगाया था लेकिन उन्हें अभी तक अपने घर नहीं मिले हैं. फिलहाल दिल्ली एनसीआर में सुपरटेक के कई प्रोजेक्ट अटके हुए हैं. फैसले के बाद इन ग्राहकों के लिये अनिश्चितता बढ़ जायेगी क्योंकि एक बार कॉर्पोरेट रिसोल्यूशन की प्रक्रिया शुरू होती है तो पहले देनदारियां चुकाई जाती हैं और प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही आगे की प्रक्रिया शुरू होती है. यानी घर खरीदारों को घर मिलने या अपनी मूल रकम वापस पाने के लिये इंतजार करना होगा.

हालांकि कंपनी ने एक बयान में कहा है कि उनके सभी प्रोजेक्ट आर्थिक रूप से सक्षम हैं इसलिये ऐसी कोई संभावना नहीं है कि किसी पक्ष का कोई नुकसान हो. कंपनी ने साफ किया कि इस फैसले का सुपरटेक ग्रुप की किसी अन्य कंपनी पर कोई असर नहीं पड़ेगा. वहीं, एनसीएलटी ने अपने फैसले में कहा कि कंपनी के द्वारा यूनियन बैंक को दिये गये वन टाइम सेटलमेंट को बैंक ने स्वीकार नहीं किया. इसलिये कंपनी को दीवालिया घोषित किया गया है.

सुपरटेक के दो टावर गिराने का आदेश

सुपरटेक अपने दो टावर को गिराने के आदेश की वजह से पहले से ही दबाव में है. नोएडा के सेक्टर 93 ए में स्थित सुपरटेक के दो टावर को गिराने का कोर्ट पहले ही आदेश जारी कर चुका है. इन ट्विन टावर में करीब 1000 फ्लैट हैं जिससे में दो तिहाई बुक हो चुके थे. टावर को गिराने का निर्णय इसलिये किया गया क्योंकि ये अवैध निर्माण था. साल 2014 में ही कोर्ट ने दोनो टावर गिराने का फैसला सुनाया था. बाद में डेवलपर फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गये. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने भी फैसला बरकरार रखा.

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