ठोस जैव ईंधन के मानकीकरण” पर बोले एनटीपीसी निर्देशक-भारत में प्रति वर्ष 500 मीट्रिक टन बायोमास की क्षमता

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धनबाद/जोरापोखर। ऊर्जा के लिए कोयले के ऊपर निर्भरता को काम कर बायोमास को बढ़ाना होगा। एनटीपीसी ने अपने पवार प्लांट में कोयले के साथ बायोमास का प्रयोग की पहल शुरू किया है। इससे कोयले पर से निर्भरता थोड़ी कम हुई है।

उन्होंने कहा की भारत में प्रति वर्ष 500 मीट्रिक टन बायोमास की छमता है, जिससे 17 हजार 500 मेगावाट बिजली का उत्पादन किया जा सकता है। यह बातें “ठोस जैव ईंधन के मानकीकरण” पर इंटरएक्टिव मीट ब्रिकेट्स/पेलेट्स सीएसआईआर (केंद्रीय खनन और ईंधन अनुसंधान संस्थान) डिगवाडीह परिसर में भारतीय मानक ब्यूरो, नई दिल्ली द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित कार्यक्रम में मुख्य अतिथि एनटीपीसी निर्देशक (ऑपरेशन) राम बाबू ने कही।

इस मौके पर सिम्फ़र के निदेशक डॉ पीके सिंह, बीआईएस डीडीजी जे आर चौधरी, बीआईएस के तकनीकी हेड श्रीमति नाग मणि, डॉ एके सिंह समेत कई वैज्ञानिक मौजूद थे। कार्यक्रम में स्वागत भाषण डॉ पीके सिंह ने दिया और धन्यवाद् ज्ञापन डॉ एके सिंह ने किया।

बायोमास के प्रयोग से पवार प्लांटों में कोयले पर निर्भरता 5 प्रतिशत हुई कम

एनटीपीसी निदेशक राम बाबू ने कहा की बायोमास के प्रयोग में लाने से पवार प्लांटों में कोयले पर निर्भरता 5 प्रतिशत की कमी आई है। पांच प्रतिशत बायोमास कोयले के साथ फायरिंग के लिए सालाना 30 मिलियन टन बायोमास की जरूरत है। कहा की हमें ऊर्जा के लिए कोयले के ऊपर निर्भरता कम करना होगा।

पर्यावरण में कार्बन को कम करने के लिए सभी को करना होगा काम : चौधरी

बीआईएस डीडीजी जेआर चौधरी ने कहा कि हाल ही में सीओपी 26 की महत्वपूर्ण बैठक में निर्णय लिया गया कि पर्यावरण में कार्बन को कम करने के लिए सभी को काम करना होगा। बायोमास का इस्तेमाल करते समय इसका ध्यान रखना होगा।

इंडस्ट्री, पावर प्लांट और शोध संस्था से मिलकर करना होगा काम : नागमणि
बीआईएस के तकनीकी हेड श्रीमती नाग मणि ने कहा कि बायोमास के इस्तेमाल करने के लिए इंडस्ट्री ,पावर प्लांट और( आरएनडी ) शोध संस्था को मिल कर काम करना होगा।

क्या है बायोमास, जो ले सकता है कोयले और चारकोल की जगह

बायोमास ब्रिकेट्स को लकड़ी, जड़ी-बूटियों, फलों या जलीय बायोमास के साथ-साथ मिश्रणों के साथ या बिना एडिटिव्स के साथ बनाया जाता है। भारत में प्रति वर्ष उपलब्धता लगभग 500 मीट्रिक टन बायोमास की क्षमता है। एमएनआरई के अनुसार इतने बायोमास से तक़रीबन 17,500 मेगावाट बिजली का उत्पादन किया जा सकता है।

बिजली संयंत्रों में बायोमास का उपयोग सल्फर और नाइट्रोजन और अन्य ग्रीन हाउस गैसों के ऑक्साइड के समग्र उत्सर्जन को कम करता है। इसलिए बायोमास अनुसंधान का एक उभरता हुआ क्षेत्र है और पूरे विश्व में बायोमास अनुसंधान पर बहुत जोर दिया जाता है। एक जैव ईंधन जो कोयले और चारकोल की जगह ले सकता है।

सामान्य तौर पर, बायोमास ठोस ईंधन पर मानकों को विकसित करने की तत्काल आवश्यकता है। कई मुद्दों पर विचार-विमर्श करने के लिए बीआईएस और सीएसआईआर- सीआईएमएफआर संयुक्त रूप से इस कार्यक्रम का आयोजन कर रहे हैं।

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