रिपोर्ट : सन्नी शर्मा
झरिया : आज की इस रफ्तार भरी जिंदगी में लोग अपनी इच्छाओं के अनुसार खुद को बदलते रहते है। लेकिन आज भी इतिहास से जुड़े कुछ ऐसे व्यपार है जिनका बदलना ही कोई संगीत प्रेमी चाहता हो।
दरअसल आज के आधुनिक युग मे संगीत से जुड़े युवा वर्ग मे तबला, बांसुरी, हारमोनियम और बिगुल की जगह अब पियानों , ड्रम , गिटार जैसे आधुनिक तकनीक के वाद्ययंत्र के प्रति ज्यादा झुकाव देखा जा रहा है। जिसका परिणाम अब बाजारों मे भी देखने को मिल रहा है।तबला, बांसुरी, हारमोनियम से जुड़े व्यपारियों को अब अपना भविष्य अधर पर लटकता नजर आ रहा है। हफ़्तों तक बोहनी बट्टा ना होने के कारण अब इन व्यपारियों के समक्ष खाने के लाले पड़ गए हैं। अपना व अपने परिवार का पेट कैसे भरे अब इन्हें चिंता सताने लगी है। सन 1925 मे रामधनी मिस्त्री ने झरिया मे वाद्ययंत्र बेचने का व्यपार की सुरुवात की थी। जिसके बाद अपने पिता के व्यपार को आगे बढ़ते हुए उनके पुत्र राजदेव मिस्त्री ने वाद्ययंत्र विक्रेता के रूप मे क्षेत्र मे अपनी अलग पहचान बनाई। बोकारो , रांची , जमशेदपुर व बंगाल के कई हिस्सों से लोग झरिया वाद्ययंत्र खरीदने आते थे। आज भी स्वर्गीय राजदेव मिस्त्री का पुत्र बसंत मिस्त्री वाद्ययंत्र मरम्मत व निर्माण से जुड़े हुए है। बसंत मिस्त्री ने बताया कि पुश्तेनी काम है एक समय था जब दूर दराज से लोग इनके पर हारमोनियम खरीदने व मरम्मत करने आते थे लेकिन अब धंधा पूरी तरह से मंदा हो चुका है जिसका कारण है बाजारों मे अब इलेक्ट्रॉनिक कैसियो, गिटार , पियानों समेत कई आधुनिक तकनीक द्वारा निर्मित वाद्ययंत्र अब युवाओं की पहली पसंद बन चुका है। कोरोना के कारण स्कूल कॉलेज भी बंद है साथ ही धार्मिक आयोजनों पर भी पाबंधी है। तीन पुस्त से यही कारोबार करते आ रहे है अब उम्र भी इतना हो चुका की कोई दूसरा काम नही कर सकता जब तक जीवित हु वाद्ययंत्र मरम्मत कार्य करता रहूंगा।