यह झारखंड है… जो गवर्नर चाहेगा, वह लागू नहीं होगा’- विधेयक लौटाए जाने पर भड़के CM सोरेन

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1932 के खतियान आधारित स्थानीय नीति विधेयक लौटाए जाने के बाद झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और राज्यपाल के बीच टकराव की स्थिति बनी हुई है. राज्यपाल रमेश बैस ने झारखंड विधानसभा में एक दिवसीय विशेष सत्र बुलाकर पारित कराए गए 1932 के खतियान आधारित स्थानीय नीति विधेयक 2022 को संविधान और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के विरुद्ध बतलाया है. ‘

इस विधेयक को राज्यपाल द्वारा लौटाए जाने से नाराज मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने सरायकेला में खतियानी जोहार यात्रा के दौरान कहा कि “यह दिल्ली नहीं है. यह जम्मू कश्मीर या अंडमान निकोबार नहीं है. यह झारखंड है. यहां की चुनी हुई सरकार जो चाहेगी, वहीं लागू होगा . ना कि जो गवर्नर चाहेगा, वह लागू होगा. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि राज्य के आदिवासी , मूलवासी और खतियान धारियों को यह लोग बोका (बेवकूफ) समझते हैं. उन्होंने केंद्र की सरकार को चुनौती देते हुए कहा कि चिंता मत करो. यहां की सवा तीन करोड़ खतियान धारी जनता, जिन्हें आप बोका (बेवकूफ) समझते हैं, यही लोग अब सबक सिखाएंगे. यही बोका अब ठोकेगा, राजनीति करना भूल जाओगे.

‘राज्यपाल के माध्यम से राज्य सरकारों को परेशान किया जा रहा’
सोरेन ने अपने संबोधन में कहा कि यह कोई नई बात नहीं है. झारखंड ही नहीं, बल्कि देश के जिन राज्यों में भारतीय जनता पार्टी की सरकार नहीं है, वहां राज्यपाल के माध्यम से चुनी गई सरकार को परेशान किया जा रहा है. 1932 के खाद्यान्न आधारित स्थानीय नीति विधेयक को राज्यपाल के द्वारा असंवैधानिक कहा गया है. वह कहते हैं कि ऐसा विधेयक नहीं लाना चाहिए, जिससे विवाद हो. हमारे हक के एक लाख 37 हजार करोड़ जो कोल और खनन कंपनी से निकलता है. हमें पैसे नहीं मिल रहे क्या यह संवैधानिक है. खनन कंपनियां हमारे कोयले से मुनाफा कमा रही हैं और हम थर्ड और फोर्थ ग्रेड के लिए भीग मांग रहे हैं क्या यह संवैधानिक है ?

खतियान आधारित स्थानीय नीति संबंधी विधेयक राज्यपाल ने लौटाया
बता दें कि राज्यपाल रमेश बैस ने द्वारा झारखण्ड विधान सभा से बहुमत से पारित 1932 के खतियान आधारित स्थानीय नीति संबंधी विधेयक को वापस लौटा दिया है. राज्यपाल ने झारखण्ड स्थानीय व्यक्तियों की परिभाषा और परिणामी सामाजिक, सांस्कृतिक और अन्य लाभों को ऐसे स्थानीय व्यक्तियों तक विस्तारित करने के लिए विधेयक, 2022 की पुनर्समीक्षा हेतु राज्य सरकार को वापस करते हुए कहा है कि राज्य सरकार इस विधेयक की वैधानिकता की समीक्षा करें कि यह संविधान के अनुरूप एवं माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेशों व निदेशों के अनुरूप हो.

इस अधिनयम के अनुसार, स्थानीय व्यक्ति का अर्थ झारखंड का डोमिसाइल होगा जो एक भारतीय नागरिक है और झारखंड की क्षेत्रीय और भौगोलिक सीमा के भीतर रहता है और उसका या उसके पूर्वज का नाम 1932 या उससे पहले के खतियान में दर्ज है. इसमें उल्लेख है कि इस अधिनियम के तहत पहचाने गए स्थानीय व्यक्ति ही राज्य के वर्ग-3 और 4 के विरुद्ध नियुक्ति के लिए पात्र हों.

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