लोक जनशक्ति पार्टी का चुनाव चिह्न फ्रीज, चिराग पासवान और पशुपति कुमार पारस को इलेक्शन कमीशन से झटका

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चुनाव आयोग ने लोक जनशक्ति पार्टी के चुनाव चिन्ह को फ्रीज कर दिया है। आयोग के फैसले के मुताबिक अब दोनों ही नेता पार्टी के चिन्ह बंगला का इस्तेमाल नहीं कर सकेंगे। चुनाव आयोग ने दोनों ही पक्षों को विवाद का हल निकालने के लिए भी कहा है। चुनाव आयोग ने कहा है कि दोनों पक्ष पार्टी के नाम और चिन्ह को लेकर जल्द ही विवाद का हल निकालें।

चुनाव आयोग का फैसला ऐसे समय पर आया है जब बिहार में दो विधानसभा सीटों पर उप चुनाव होने वाले हैं। मुंगेर के तारापुर और दरभंगा के कुशेश्वरस्थान में 30 अक्टूबर को वोट डाले जाने हैं। उप चुनाव के लिए नामांकन शुरू हो चुका है। मौके की नजाकत को देखते हुए लोक जनशक्ति पार्टी के दोनों धड़ों को जल्द ही विवाद का निपटारा करना होगा। चुनाव आयोग ने दोनों गुटों से 4 अक्टूबर दोपहर 1 बजे तक चुनाव चिन्ह के लिए नया नाम मांगा है।

चाचा पशुपति पारस व भतीजे चिराग पासवान के बीच विवाद की शुरुआत पार्टी संस्थापक रामविलास पासवान के निधन के बाद ही हो गई थी। पार्टी के प्रदर्शन से नाराज पांच सांसदों ने पशुपति पारस के नेतृत्व में बगावत कर दी थी। पारस गुट ने खुद को असली जनशक्ति पार्टी बताते हुए लोकसभा में स्पीकर से जगह मांगी थी, जिसको मंजूरी मिल गई थी। पशुपति पारस को केंद्रीय कैबिनेट में भी शामिल कर लिया गया था। वह खुद को एलजेपी का असली वारिस बताते हैं पर चिराग का कहना है कि चाचा ने पीठ में छुरा मारकर बगावत को अंजाम दिया।य

साल 2020 के विधानसभा चुनाव में चिराग एनडीए से अलग हो गए थे। इस चुनाव में उन्हें सिर्फ एक सीट पर जीती मिली थी और वह उम्मीदवार भी जेडीयू में शामिल हो गया था। इसके बाद से ही एलजेपी में बगावत की सुगबुगाहट शुरू हो गई थी। चाचा पारस जब सारे सांसदों को लेकर अलग हो गए तो चिराग पासवान ने चुनाव आयोग से मांग की थी कि पार्टी का चुनाव चिन्ह उनके गुट के पास रहे।

उधर, चिराग को संसदीय दल के नेता के पद से हटाते हुए पशुपति पारस ने दावा किया था कि वह पार्टी को नहीं तोड़ रहे हैं बल्कि इसे बचा रहे हैं। हालांकि रामविलास पासवान की बरसी पर दोनों परिवार एक साथ दिखे, लेकिन ऐसा कोई संकेत नहीं मिला जिससे लगे कि दोनों एक साथ फिर से आने के लिए तैयार हो सकते हैं। फिलहाल दोनों ही गुट एक दूसरे को मात देने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं। लेकिन जिस तरह से पारस को केंद्र में मंत्री बनाया गया उसमें साफ है कि बीजेपी चिराग को महत्व देने के मूड़ में नहीं दिख रही है।

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