हरियाणा के हिसार स्थित राखीगढ़ी साइट पर करीब 7000 साल पुराने हड़प्पा कालीन शहर के दफन होने के राज खुलने वाले हैं। भारतीय पुरातात्विक विभाग को अभी तक खोदाई में विकसित शहर होने के सबूत मिले हैं। साफ-सफाई, सड़कें, आभूषण, पॉटरी, खिलौने, बर्तन से लेकर शवों के अंतिम संस्कार के भी सबूत मिल रहे हैं। टीला नंबर एक की खोदाई में स्मार्ट सिटी की झलक दिखती है, जोकि नॉर्थ-ईस्ट, वेस्ट-साउथ के आधार पर हैं।
अभी तक तीन टीलों की खोदाई में कुल 50 कंकाल मिल चुके हैं। जबकि खोदाई के दौरान पिछले दिनों दो महिलाओं के नए कंकाल भी मिले हैं। इसमें एक महिला के कंकाल की कलाई में एक चुड़ी मिली है। इनके डीएनए जांच के लिए भेज दिये हैं, ताकि सही जानकारी मिल सके। इसके अलावा कंकाल के पास खाने के बर्तन भी दिखे हैं। यह दर्शाता है कि उस काल में भी संस्कार विधि-विधान से किया जाता रहा होगा। इसके अलावा खोदाई में मिले सामान से विशेषज्ञों का आकलन है कि यह कोई बड़ा व्यवसायिक केंद्र भी रहा होगा।
भारतीय पुरातत्व विभाग के संयुक्त महानिदेशक संजय कुमार मंजुल ने बताया कि राखीगढ़ी गांव कुल 11 टीलों पर बना है। इन्हीं 11 टीलों के नीचे खोदाई में हड़प्पा काल के पुराने शहर के सबूत मिल रहे हैं। फिलहाल टीला नंबर एक, तीन और सात की खोदाई चल रही है। इसमें से टीला नंबर एक में पुराने शहर के अंश दिख रहे हैं। विशेषज्ञों और रिसर्च टीम का मानना है कि हड़प्पाकालीन शहर बेहद विकसित शहर रहा होगा। टीला नंबर एक की खोदाई में शहर के सबूत हैं। इसकी टाउन प्लानिंग आज की स्मार्ट सिटी की प्लानिंग जैसी है। यानी शहर नॉर्थ-ईस्ट, वेस्ट-साउथ के आधार पर बसाया गया है। लेकिन इसमें करीब 20 डिग्री का थोड़ा बदलाव है। यानी बिल्कुल सीधा-सीधा नहीं है।
बाहरी दीवार पक्की ईंट तो अंदर की दीवारें कच्ची मिटटी की हैं। बाहर इसलिए पक्की ईंट का प्रयोग किया गया है, जिससे उस समय बैलगाड़ी या कोई नुकीली चीज लगने से उसको नुकसान से बचाना रहा होगा। हर घर से निकलने वाले गंदे पानी को सीधे नालियों में नहीं गिराया जाता था, बल्कि हर घर के बाहर चारों कोनों में मिट्टी के बड़े -बड़े घड़ा या बर्तन होता था। उसके बाद उससे पानी नालियों से चरणबद्ध तरीके से बाहर जाता रहा होगा, ताकि कचरा नालियों में न जाएं। वहां एक चूल्हा भी मिला है। चूल्हे को मडब्रिक लगाकर उसका प्लेटफार्म तैयार किया गया, फिर उसमें एयरसप्लाई होती थी, तब ये चूल्हा या भट्टी जलती थी या नहीं, खाना बनता था या नहीं यह शोध का विषय है। ईंट, नालियां, नालियों के ऊपर रखे मिट्टी के घड़े प्राचीन इतिहास की कई अनसुलझी परतों को खोलते हैं।
रिसर्च स्कॉलर प्रवीण ने बताया कि टीला नंबर 7 के नीचे हड़प्पाकालीन लोगों के शवों के अंतिम संस्कार के सबूत मिले हैं। हाल की ताजा खोदाई के दौरान वहां दो महिलाओं के शव मिले हैं। शवों के आसपास रखे सामान हड़प्पाकाल के विकसित होने के कई सबूत दे रहे हैं। उन सामानों में शेल के बैंगल,पॉट्स मिले हैं। इसका मतलब ये है कि जो उनका मनपसंद खाना था, वो चीजें लाश के साथ साथ रखा जाता रहा होगा। इसके अलावा खोदाई में वहां कॉपर का एक आईना, पॉटरी और खिलौने भी मिले हैं।
वहीं, कुछ कच्चे मोहर (स्टांप) मिले हैं जो मिट्टी के बने हैं। इस पर कोई लिपि लिखी हुई है। वहीं, मिट्टी के हाथी भी मिले हैं, जोकि कच्ची मिट्टी यानी पके हुए नहीं हैं। इसके अलावा कंकाल के पास तांबे की अंगूठियां, सोने के पत्तर भी मिले हैं। यह आभूषण के तौर पर प्रयोग किए जाते रहे होंगे। इसके अलावा सेमी प्रीसियस फाइंडिंग मिली है, जिसमें गोल्ड फ्लायल शामिल हैं।
विलुप्त होने कारण पानी की कमी हो सकतीः
इस प्रोजेक्ट के रिसर्च स्कॉलर सौरभ कहते हैं अभी तक खोदाई में इस शहर के विलुप्त होने का कारण कोई बाहरी हमला नहीं लग रहा है। माना जा सकता है कि पानी की कमी इसका कारण हो सकती है। हड़प्पाकाल का ये शहर विलुप्त हो चुकी सरस्वती की सहायक नदी दृश्वद्वती के किनारे बसा था। करीब 500 हेक्टेयर में फैला एक नगरीय या व्यवसायिक केंद्र रहा होगा। दरअसल, पॉटरी में गुजरात, बंगाल, कश्मीर की कलाकारी दिख रही है। इसका मतलब है कि यहां व्यवसाय भी होता रहा होगा।
म्यूजियम में दर्शक जल्द देख सकेंगेः
हरियाणा सरकार और एएसआई ने मिलकर म्यूजियम तैयार किया है। इस म्यूजियम में यहां खोदाई से मिले सामान को दर्शकों के लिए रखा जाएगा। इसका मकसद हड़प्पा काल सभ्यता से भावी पीढ़ियों को जागरूक करवाना है। केंद्र सरकार ने राखीगढ़ी को हड़प्पाकाल की आइकॉनिक साइट का दर्जा दिया हुआ है।