चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों की तरफ से जनता को भरमाने के लिए फ्री चीजें देने के मामले में चुनाव आयोग ने अपनी बेबसी जताते हुए कहा है कि वो ऐसे वायदों पर रोक नही लगा सकता। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग ने कहा कि ऐसा करना आयोग के अधिकार क्षेत्र से बाहर है। मुफ्त उपहार देना राजनीतिक पार्टियों का नीतिगत फैसला है। कोर्ट चाहे तो पार्टियों के लिए गाइडलाइन तैयार कर सकती है।
आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किए हलफनामे में कहा है कि चुनाव से पहले या बाद में मुफ्त उपहार की पेशकश या वितरण सियासी दल का नीतिगत निर्णय है। चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के जून 2013 के सुब्रमण्यम बालाजी के फैसले का भी जिक्र किया। इसमें ऐसे वायदों को गलत नहीं माना गया था। चुनाव आयोग ने कहा कि ऐसे वादों पर राजनीतिक दलों का पंजीकरण रद्द करने की शक्ति उसके पास नहीं है। जनता को सोचना चाहिए ऐसे वादों का अर्थव्यवस्था पर क्या असर होगा।
राजनीतिक दलों द्वारा मतदाताओं को रिझाने के लिए मुफ्त उपहारों के वायदे पर भाजपा नेता व वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने याचिका दायर की थी। इसमें कहा गया है कि राजनीतिक दलों द्वारा चुनाव के समय मुफ्त उपहार की घोषणा से मतदाताओं को प्रभावित किया जाता है। इससे चुनाव प्रक्रिया पर सवालिया निशान लगता है। इस तरह के प्रलोभनों ने सारे सिस्टम की जड़ों को हिलाकर रख दिया है। याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और चुनाव आयोग को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था। उस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों के मुफ्त उपहार देने से वादे पर चिंता भी जताई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि ये बेहद गंभीर मामला है। ऐसे वायदे चुनाव को प्रभावित करते हैं, लेकिन अदालत के दखल का दायरा बहुत सीमित है। कोर्ट ने कहा कि उसने चुनाव आयोग को इस पर गाइडलाइंस बनाने को कहा था लेकिन कमीशन ने महज एक मीटिंग की। उसका नतीजा क्या रहा, ये पता नहीं। कोर्ट ने याचिकाकर्ता से ये भी पूछा कि उसने केवल दो पार्टियों का जिक्र क्यों किया है। जबकि इस तरह के वायदे तो तकरीबन सभी दल कर रहे हैं। भाजपा नेता के वकील विकास सिंह ने कोर्ट को आश्वस्त किया कि वो अपनी याचिका में बाकी सभी दलों के नामों को शामिल करेंगे।