मुंबई की एक अदालत ने जबरन वसूली मामले में बुधवार को आईपीएस अधिकारी परमबीर सिंह को भगोड़ा करार दे दिया। कोर्ट ने यह फैसला लगातार समन जारी होने के बावजूद पेश नहीं होने पर लिया। बताते चलें कि परमबीर के आरोपों पर ही महाराष्ट्र के गृहमंत्री के खिलाफ सीबीआई जांच शुरू हुई थी। सिंह को 30 दिनों का अल्टीमेटम दिया गया है, यदि इस अवधि में वह कोर्ट के सामने हाजिर नहीं होते हैं तो उनकी संपत्ति जब्त करने की कार्रवाई की जाएगी।
अपने ही पूर्व कमिश्नर को नहीं खोज पाई मुंबई पुलिस: मामले की जांच कर रही मुंबई पुलिस की क्राइम ने यह कहते हुए भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के अधिकारी सिंह को ‘‘फरार घोषित’’ किए जाने का अनुरोध किया था कि उनके खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी होने के बाद भी उनका पता नहीं लगाया जा सका है।
क्या होगा अब: दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 82 के तहत अदालत द्वारा उद्घोषणा प्रकाशित किए जाने पर आरोपी को हाजिर होना जरूरी होता अगर उसके खिलाफ जारी वारंट की तामील नहीं हो पाई है। धारा 83 के तहत उद्घोषणा प्रकाशित किए जाने के बाद अदालत आरोपी की संपत्ति जब्त करने का आदेश दे सकता है।
दो और अधिकारी हुए फरार घोषित: गोरेगांव थाने में दर्ज मामले में पूर्व सहायक पुलिस निरीक्षक सचिन वाजे भी आरोपी है। परमबीर सिंह के अलावा सह आरोपी विनय सिंह और रियाज भट्टी को भी अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट एस बी भाजीपले ने ‘फरार घोषित’ किया है।
रियल एस्टेट डेवलपर और होटल व्यवसायी बिमल अग्रवाल ने आरोप लगाया था कि आरोपियों ने दो बार और रेस्तरां पर छापेमारी नहीं करने के लिए उनसे नौ लाख रुपये की वसूली की। उन्होंने दावा किया था कि ये घटनाएं जनवरी 2020 और मार्च 2021 के बीच हुई थीं। अग्रवाल की शिकायत के बाद छह आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 384 और 385 (दोनों जबरन वसूली से संबंधित) और 34 (समान मंशा) के तहत मामला दर्ज किया गया था।
सिंह के खिलाफ ठाणे में भी वसूली का मामला दर्ज है। मामले में वाजे की गिरफ्तारी के बाद सिंह को मार्च 2021 में मुंबई पुलिस आयुक्त पद से हटा दिया गया था।