सैयद अली शाह गिलानी- जिए और मरे भारत में लेकिन खुद को नहीं माना भारतीय, जिंदगी भर की पाक की तरफदारी

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जम्मू-कश्मीर – कट्टरपंथी अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी का बुधवार को इंतेकाल हो गया। उनके नहीं रहने से घाटी में अलगाववादी अभियानों और इससे जुड़े लोगों को तगड़ा झटका लगा है। गिलानी ने करीब तीन दशक तक कश्मीर में हिंसा कराई और अशांति के लिए जिम्मेदार रहे।

गिलानी का जन्म 29 सितंबर 1929 को कश्मीर के सोपोर जिले में हुआ था, लेकिन वह खुद को भारतीय नहीं मानते थे। वह हमेशा भारत के खिलाफ जहर उगलते रहे। एक बार सैयद अली शाह गिलानी अपने यात्रा दस्तावेज की औपचारिकताएं पूरी कराने पासपोर्ट ऑफिस पहुंचे थे। वहां अधिकारियों से उन्होंने कहा कि वह भारतीय नहीं है, मगर खुद को भारतीय घोषित करना उनकी मजबूरी है। तब हुर्रियत नेता गिलानी अपनी बीमार बेटी को देखने सऊदी अरब जा रहे थे।

गिलानी जमात-ए-इस्लामी कश्मीर के कद्दावर नेताओं में शुमार किए जाते थे। वह जम्मू-कश्मीर विधानसभा के तीन बार (1972, 1977 और 1987) सदस्य रह चुके थे। जब उनकी मौत हुई, तब उनके साथ उनकी पत्नी जवाहिरा बेगम, उनके दोनों बेटे नईम गिलानी और नसीम गिलानी थे। गिलानी का सबसे बड़ा दामाद अल्ताफ शाह इन दिनों टेरर फंडिंग मामले में दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद है।

गिलानी ने बीते जून में ऑल पार्टी हुर्रियत कांफ्रेंस से इस्तीफा दे दिया था। पाकिस्तान ने उनके प्रति बेरुखी अपना रखी थी और वहां बैठे आका चाहते थे कि कश्मीर में हिंसा करा पाने में नाकाम रहे गिलानी अब यह पद छोड़ दें। गिलानी ने भारी मन से हुक्मरानों के आदेश पर इस्तीफा दे दिया था।

गिलानी ने मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट ऑफ कश्मीर और हुर्रियत कांफ्रेंस के गठन में अहम भूमिका निभाई थी। साथ ही अल्लामा इकबाल पर एक और अलगाववाद तथा इस्लाम पर चार किताबें लिखी हैं। गिलानी करीब तीन दशक तक कश्मीर में अशांति फैलाने और हिंसा कराने के लिए जिम्मेदार रहे। अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35-ए हटने के बावजूद कश्मीर में शांति रही। गिलानी तमाम कोशिशों के बाद भी हिंसा नहीं करा सके। ऐसे में पाकिस्तान में बैठे उनके आका नाराज हो गए। तभी से पाकिस्तान ने उनसे किनारा कर लिया और बाद में गिलानी को मजबूरी में ही सही मगर 27 साल बाद हुर्रियत छोडऩी पड़ी।

दरअसल, तब गिलानी कश्मीर में हिंसा नहीं करा पा रहे थे और पाकिस्तान को लगने लगा था कि अब उनकी उपयोगिता नहीं रह गई है। इस वजह से पाकिस्तान ने धीरे-धीरे गिलानी को किनारे करना शुरू कर दिया था। यही नहीं, उनकी मर्जी के खिलाफ पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर में हुर्रियत प्रमुख का चुनाव कराया गया और गिलानी को यह बात बहुत बुरी लगी।

हालांकि, यह अलग बात है कि गिलानी की मौत पर पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान कुछ ज्यादा ही संजीदा हो गए है और गिलानी के मरने पर पाकिस्तान में एक दिन शोक घोषित कर दिया है। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने गिलानी के मरने पर दुख व्यक्त किया। इमरान खान ने ट्वीट कर कहा कि पाकिस्तान में एक दिन का शोक रहेगा और झंडा आधा झुका रहेगा।

गिलानी को हाल ही में भारत सरकार की ओर से 14.4 लाख रुपए बतौर जुर्माना भुगतान नहीं करने पर रिमाइंडर नोटिस भेजा गया था। यह जुर्माना उन पर प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी की ओर से फेमा के तहत लगाया गया था।

एक समय गिलानी की कश्मीर में इतनी चलती थी कि उनके एक बार कहने पर पूरी घाटी बंद हो जाती थी। सडक़ें सूनी हो जाती और कोई घर से बाहर नहीं निकलता। दुकानें और उद्योग बंद हो जाते। व्यापार पूरी तरह ठप पड़ जाता था। हैदरपोरा में उनका घर था और अक्सर वह वहां नजरबंद रहते थे, मगर पूरी घाटी में उनके नाम से फतवे तब भी जारी होते थे और इस तरह कश्मीर को हिंसा की आग में झोंक दिया जाता। गिलानी ने मई 2015 में अमरनाथ यात्रा को लेकर भी एक विवादित बयान दिया था।

गिलानी ने कश्मीर के त्राल में तब कहा था कि अमरनाथ यात्रा एक महीने यानी 30 दिनों से अधिक नहीं चलनी चाहिए। इस रैली में पाकिस्तानी झंडे भी लहराए गए थे। यही नहीं, 2014 में आयोजित एक अन्य सभा में गिलानी ने त्राल में सेना के कर्नल एमएन राय की हत्या करने वाले आतंकियों के मुठभेड़ में मारे जाने पर उन्हें शहीद बताया था।

यही नहीं, वर्ष 2016 में कुख्यात आतंकी और हिज्बुल सरगना बुरहान वानी के मारे जाने के बाद घाटी में कई महीनों तक हिंसा का दौर जारी रहा था। यह पूरी गिलानी और इन जैसे कुछ अलगाववादियों के इशारे पर रची जाती थी। इनके कहने पर ही पहली बार घाटी में छात्राओं को भी पत्थरबाजी करने के लिए सडक़ों पर उतार दिया गया था।

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