उपचार के दौरान मरीज की मृत्यु या कथित लापरवाही के मामलों में अब सिर्फ आरोप के आधार पर डॉक्टर्स और चिकित्साकर्मियों के खिलाफ एफआइआर दर्ज नहीं हो सकेगी। इन्हें सीधे गिरफ्तार भी नहीं किया जा सकेगा।
गृह विभाग ने एक आदेश जारी कर चिकित्साकर्मियों से मारपीट को लेकर एसओपी जारी की है। अब पुलिस बिना जांच के डॉक्टरों के खिलाफ केस नहीं दर्ज करेगी। घोर चिकित्सीय उपेक्षा की राय मिलने पर एफआईआर दर्ज होगी। केस दर्ज होने के बाद भी एसपी की मंजूरी से ही गिरफ्तारी होगी। सबसे पहले चिकित्साकर्मियों से लापरवाही होने का मामला थाने में परिवाद रोजनामचे में अंकित किया जाएगा। चिकित्सकीय उपेक्षा से मृत्यु होने पर धारा 174 के तहत दर्ज होगा। थानाधिकारी निष्पक्ष जांच में मेडिकल बोर्ड से राय लेगा। मेडिकल बोर्ड 15 दिन में अपनी राय थानाधिकारी को देंगे।
डॉक्टर्स पर FIR की नई SOP इस तरह से होगी
चिकित्सकीय लापरवाही की शिकायत या परिवाद आने पर थाना प्रभारी उसे रोजनामचे में लिखेगा। अगर सूचना या परिवाद मौत से संबंधित है तो पोस्टमॉर्टम की वीडियोग्राफी भी करवाई जाएगी।
चिकित्सकीय लापरवाही की शिकायत पर थानाधिकारी प्राथमिक जांच करेंगे।
मेडिकल बोर्ड अधिकतम 15 दिन में अपनी राय देगा। विशेष परिस्थितियों में समय बढ़ भी सकेगा।
बोर्ड की रिपोर्ट के आधार पर ही एफआइआर दर्ज हो सकेगी।
इस संबंध में राय लेने के लिए तीन दिन में मेडिकल बोर्ड का गठन होगा।
आईएमए ने स्वीकार की नई एसओपी
सरकार के द्वारा इलाज में लापरवाही के संबंध में गिरफ्तारी पर जारी की गई नई एसओपी को मेडिकल समुदाय से स्वीकार कर लिया है। आईएमए यानी इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के राजस्थान के अध्यक्ष डॉक्टर अशोक शारदा ने नई एसओपी को संतोष जनक बताते हुए पत्रिका से कहा कि हमारी 90 प्रतिशत मांगें मान ली गई हैं। जो कुछ मांगें शेष हैं, उसके लिए हम सरकार से वार्ता जारी रखेंगे।
सिर्फ इन हालात में होगी डॉक्टर्स की गिरफ्तारी
दौसा में डॉक्टर की आत्महत्या के मामले के बाद गृह विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव की ओर से जारी एसओपी के अनुसार मेडिकल बोर्ड की राय में घोर चिकित्सकीय लापरवाही होने और जांच में सहयोग नहीं करने या भागने की संभावना पर एसपी स्तर के अधिकारी की अनुमति के बाद ही डॉक्टर और चिकित्साकर्मी को गिरफ्तार किया जा सकेगा। डॉक्टर या चिकित्साकर्मी की शिकायत व सूचना पर शीघ्र कार्रवाई होगी। पुलिस को राजस्थान चिकित्सा परिचर्या सेवाकर्मी और चिकित्सा परिचर्या सेवा संस्था अधिनियम 2008 की सख्ती से पालना करने को कहा गया है।
डॉक्टर्स भी नहीं करेंगे कार्य बहिष्कार
गृह विभाग ने जहां डॉक्टर्स एवं चिकित्साकर्मियों को संरक्षण दिया है, वहीं उनसे अपेक्षा की है कि लोगों के जीवन की सुरक्षा देखते हुए किसी अप्रिय घटना या अपनी मांग मंगवाने के लिए वे कार्य का बहिष्कार नहीं करेंगे। अपनी मांग राज्य सरकार के समक्ष विधि के अनुसार रखेंगे। इसी के साथ उपचार का व्याख्यात्मक विवरण तैयार करना होगा।
एसपी स्तर के अफसर की अनुमति जरूरी
इलाज के दौरान लापरवाही के संबंध में मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट मिलने के बाद ही चिकित्सक की गिरफ्तारी संभव होगी। गिरफ्तारी के पहले पुलिस अधीक्षक स्तर के अधिकारी की अनुमति लेनी होगी। डॉक्टर या अन्य मेडिकल स्टाफ के जांच में सहयोग नहीं करने या अभियोजन से भागने के संबंध में थानाधिकारी की लिखित रिपोर्ट पर गिरफ्तारी के आदेश दिए जा सकेंगे।
चिकित्सक समुदाय ने ये एसओपी भी नकारी एसओपी
प्राइवेट हॉस्पिटल्स एंड नर्सिंग होम्स सोसाइटी के सचिव डॉ. विजय कपूर ने कहा कि इसमें पुलिस की जवाबदेही तय नहीं है। हाइकोर्ट की गाइडलाइन की अनदेखी कर पुलिस अधिकारियों के विरुद्ध कार्रवाई व दिशा-निर्देश पर कोई आदेश पारित नहीं किया गया है। धारा 302/04 के दुरुपयोग के रोकथाम की कोई व्यवस्था नहीं है।