दिवाली के बाद बाद अब सूर्य की साधना का छठ महापर्व कल से शुरु होने जा रहा है. आस्था का यह महापर्व हर साल कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की षष्ठी तिथि को मनाए जाता है। इस पावन पर्व पर महिलाएं कठिन व्रत रखते हुए सायंकाल में नदी तालाब या जल से भरे स्थान में खड़े होकर अस्ताचल गामी भगवान सूर्य को अर्घ्य देती है और दीप जलाकर रात्रि जागरण करते हुए गीत, कथा आदि के माध्यम से भगवान सूर्य नारायण की महिमा का बखान करती है. इस साल छठ महापर्व 30 अक्टूबर 2022 को मनाया जाएगा, लेकिन इससे जुड़ी तमाम पूजा एवं परंपराएं 2 दिन पहले यानि 28 अक्टूबर को ही नहाए खाए के साथ प्रारंभ हो जाएंंगी, जबकि इस व्रत का समापन 31 अक्टूबर 2022 को उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ होगा. आइए छठ महापर्व का धार्मिक महत्व और शुभ मुहूर्त आदि के बारे में विस्तार से जानते हैं.
छठ पर्व से जुड़ी प्रमुख तारीखें
काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास के सदस्य एवं ज्योतिषाचार्य पं. दीपक मालवीय के अनुसार छठ पर्व की शुरुआत 28 अक्टूबर 2022 को चतुर्थी तिथि में नहाए खाए से होगी. इसके बाद 29 अक्टूबर 2022 यानि पंचमी तिथि खरना कहलाती है. इस दिन सुबह से लेकर शाम तक महिलाएं व्रत रखती हैं और सूर्यास्त के बाद मीठा भात या लौकी की खिचड़ी खाकर व्रत तोड़ा जाता है. इसके बाद तीसरे दिन यानि 30 अक्टूबर 2022 को षष्ठी पर्व का मुख्य दिन होगा. इस दिन इस व्रत को रखने वाले लोग सायंकाल गंगा तट पर या किसी जल वाले स्थान पर अस्ताचल सूर्य को अर्घ्य देंगे. जबकि इसके अगले दिन यानि 31 अक्टूबर 2022 को प्रातः काल अरुणोदय बेला में उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा. इसके बाद व्रत का पारण किया जाता है.
छठ महापर्व के शुभ मुहूर्त
पंडित मालवीय के अनुसार पंचमी में षष्ठी तिथि देश की राजधानी दिल्ली के समयानुसार 30 अक्टूबर 2022 को प्रात:काल 05:49 बजे लग रही है जो कि 31 अक्टूबर 2022 को प्रातःकाल 03:27 तक रहेगी. 30 अक्टूबर 2022 को सूर्यास्त शाम को 5:38 पर होगा और 31 अक्टूबर को सूर्योदय प्रातः 6:32 पर होगा इस तरह षष्ठी तिथि की हानि है अरुणोदय काल में द्वितीय अर्घ्य के बाद व्रत का पारण होगा.
छठ पूजा का धार्मिक महत्व
पंडित दीपक मालवीय के अनुसार भारतीय संस्कृति के सारे आचार-विचार का उल्लेख पुराणों में मिलता है. सभी 18 पुराणों में भगवान सूर्य की महिमा का गुणगान मिलता है, लेकिन सूर्य पुराण में विस्तार से सूर्योपासना के बारे में उल्लेख मिलता है. इसी प्रकार भविष्य पुराण में भी सूर्य के विषय में आचार-विचार नियम के लाभ और कहां से सूर्योपासना प्रारंभ हुई का विस्तृत उल्लेख मिलता है. सूर्य षष्ठी व्रत आरंभ के बारे में कहा गया है कि राजा सांब जो कि भगवान श्री कृष्ण के पुत्र थे, उन्हें एक बार कुष्ठ रोग हो गया था. जब बहुत उपचार के बाद कुष्ठ रोग ठीक नहीं हुआ, तब एक ऋषि ने उन्हें इससे मुक्ति पाने के लिए सूर्य की उपासना करने को कहा. मान्यता है कि सूर्य उपासना को जानने वाले ब्राह्मण उस समय दिव्य लोक में रहते थे. जिन्हें गरूण देवता पृथ्वी पर लेकर आए और उन्होंने 3 दिनों तक यज्ञ व मंत्र आदि का पाठ किया. इसके बाद दिव्य लोक से आए ब्राह्मण बिहार के वैशाली मगध एवं गया आदि में बस गए. तब से यह पूजा निरंतर होती चली आ रही है.