पुरे उत्तर भारत में बुखार का कहर, इलाज के लिए घंटो करना पड़ रहा इंतजार

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मानसून के मौसम में बच्चे बीमार हो रहे हैं पश्चिमी उत्तर प्रदेश दिल्ली हरियाणा समेत समूचे उत्तर भारत में अस्पताल बुखार पीड़ित बच्चों से पटे पड़े हैं। ऐसी स्थिति में यह जानने की कोशिश की कि कैसे यह तय किया जाता है कि किस बच्चे में कौन से लक्षण हैं ? उसके आधार पर डेंगू, मिस्ट्री फीवर समेत टेस्ट किए जाते हैं। टेस्ट करने में वक्त कितना लगता है और उसके बाद इलाज कैसा होता है।

सबसे पहले डेंगू को की बात करें तो इसमें जितना हो सके तरल खाना दिया जाता है इसके लिए सबसे पहले खून में से मशीन के द्वारा प्लेटलेट टेस्ट की जाती है। जिससे यह पता चल सके कि बच्चे की स्थिति कैसी है? उसके बाद तकरीबन 2 घंटे का समय लेकर दो टेस्ट के जरिए डेंगू को कंफर्म किया जाता है। अगर बुखार चढ़े दो-तीन दिन हुए हैं तो NS1 टेस्ट के जरिए डेंगू का पता लगाया जाएगा, अगर 5 दिन से ज्यादा समय हो गया है तो IGM टेस्ट किया जाएगा।

यहां यह ध्यान रखना भी महत्वपूर्ण है कि जब भी बच्चे का डेंगू टेस्ट हो तो डॉक्टर को यह जरूर बताएं कि कितने दिनों से बुखार है, क्योंकि उसी के आधार पर सही टेस्ट संभव है वरना टेस्ट की रिपोर्ट गलत आ सकती है। जिसका असर बच्चे के इलाज और सेहत दोनों में पड़ सकता है।

Laptospirosis – यह बीमारी राजधानी दिल्ली के बच्चों में दस्तक दे चुकी है ,पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई जिलों में फैल चुकी है। इसमें दो बार बुखार चढ़ता है। पहली बार बुखार चढ़ने के बाद चार-पांच दिन के लिए उतर जाएगा, लेकिन जब दूसरी बार चढ़ेगा तो वह लंबे समय तक रहेगा। अगर सही समय पर इलाज ना मिले तो बच्चे की किडनी पर ,लीवर पर, बुरा प्रभाव पड़ सकता है जहां तक की जान भी जा सकती है।

Laptospirosis – आमतौर पर चावल की खेती, उन इलाकों में होता है जहां तालाब में गाय भैंस के साथ बच्चे नहाते और खेलते हैं जब पानी में पशुओं का मल मूत्र मिल जाए ,तो यह बीमारी हो सकती है। यह जानलेवा है ,लिहाजा इसका टेस्ट जरूरी है। टेस्ट मान्यता प्राप्त या पटरी में ही संभव है। जिसके रिपोर्ट महज 2 घंटे के अंदर आ जाती है।

अब बात करते हैं, Scrubtyphus कि जिसे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मिस्ट्री फीवर के नाम से भी जाना जाता है। जो खटमल जैसे छोटे कीट के काटने से होता है। खास बात यह है कि बुखार के साथ इसमें काले रंग के धब्बे और जकड़न हो सकती है, बच्चों में गांठ बन सकती है। जहां तक की इलाज नहीं मिलने पर जान तक जा सकती है । इसके लिए भी ब्लड टेस्ट के जरिए ब्लड के सैंपल को अलग करके उसमें बैक्टीरिया का पता लगाया जाता है, जो चंद घंटे के अंदर संभव है।

Scrubtyphus का तो कोई मरीज दिल्ली में सामने नहीं आया है, लेकिन डेंगू और Laptospirosis जरूर बच्चों में पाया गया है। जिसकी वजह से अस्पताल में बीमार और बुखार पीड़ित बच्चों की संख्या बढ़ गई है 3 गुना से ज्यादा ओपीडी में पेशेंट बढ़ गए हैं। एक डॉक्टर को 24 घंटे तक काम करना पड़ रहा है। सुबह से लेकर रात तक अस्पताल में कतार खत्म नहीं हो रही और बीमार बच्चों के साथ अभिभावकों को संभालना अस्पताल प्रशासन के लिए भी बेहद मुश्किल होता जा रहा है।

अभिभावकों का कहना है कि बच्चे क्या बुखार कम नहीं हो रहा, हृदय गति तेज चल रही है, कंडीशन क्रिटिकल है, लेकिन घंटों इंतजार करने के बाद भी डॉक्टर देखने के लिए तैयार नहीं कुल मिलाकर दिल्ली के अस्पतालों में भले ही कोरोना की तीसरी लहर से पहले हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर इंप्रूव करने के बड़े-बड़े दावे किए जा रहे हो ,लेकिन जमीन पर बच्चे बिना इलाज के बेहाल ही नजर आ रहे हैं।

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