वर्षो से दिव्यांग महिला अपने परिवार के साथ रह रही शौचालय में

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हाय रे सिस्टम…..

वर्षो से दिव्यांग महिला अपने परिवार के साथ शौचालय में रह रही है. रहने को घर नहीं, पेट भर नहीं मिलता है भोजन, कई रात भूखे सोना पड़ा.

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रांची। सिस्टम का ध्वस्त होना कहें या समाज मे दिव्यांग होने का दुर्भाग्य कहें यह बात कुसुम लकड़ा को समझ नहीं आ रही है. अपनी आपबीती सुनाते हुए कुसुम की आंख आंसू से भर जाती है. फफक कर वह रोने लगती है. इसके बाद सिस्टम, जनप्रतिनिधि एवं पदाधिकारियों को खूब कोसती है. यह कहानी नामकुम प्रखण्ड के महिलौंग पंचायत में चडरी बाजार में बने शौचालय में अपने परिवार के साथ रह रहीं दिव्यांग कुसुम लकड़ा की है. कुसुम लगभग नब्बे प्रतिषत अपने षरीर से लाचार है. वह किसी तरह दो हाथ और दो पैर के सहारे चलती है. कुसुम के पति हाबिल टोप्पो मजदूरी कर किसी तरह अपनी पत्नी, दो बच्चे और मां-बाप का पेट पाल रहे हैं. कुसुम ने बताया कि चडरी बाजार में इनका कच्चा मकान है जो बारिष में पूरी तरह से धंस चुका था. छोटे-छोटे बच्चे को लेकर सिर छुपाने के लिए उनलोगों के पास कहीं जगह नहीं था. सरकारी सुविधा नहीं मिलने की वजह से बाजार के बीच बने शौचलय में ही उनलोगों को षरण लेना पड़ा. कुसुम ने बताया कि शौचालय में ही किसी तरह जीवन गुजार रहे हैं. उन्हें ना तो राषन मिलता है और ना ही आवास योजना का लाभ मिला है. कई बार जनप्रतिनिधि व पदाधिकारियों को आवेदन दे चुके हैं लेकिन आष्वासन के अलावे उन्हें कुछ भी नहीं मिला. उसने बताया कि वह दिव्यांग होने के बावजूद परिवार को चलाने में मदद करना चाहती है लेकिन पूंजी के आभाव में वह कुछ नहीं कर पा रही है. 

कई दिन भूखे सो जाना पड़ता है, समाज से ताना भी सुनना पड़ता है. कुसुम ने बताया कि उसके पति मजदूरी का काम करते हैं, कभी काम मिलता है तो कभी नहीं भी. भोजन के आभाव में कई दिन ऐसा हुआ है कि भूखे भी रहना पड़ता है. बच्चे भूख से बिलबिलाते हुए रोने लगते हैं तो उसे किसी तरह बहला-फुसलाकर पानी पीलाकर सुला देते हैं. दिव्यांग होने की वजह से समाज के लोगों से भी ताना मिलता है. उसने बताया कि बचा हुआ भोजन लोग कुत्ते को दे देते हैं लेकिन हमलोगों को मदद कोई नहीं करता है. वह मैट्रिक पास है अगर कुछ रोजगार मिल जाता तो वह जरूर करती. सरकार से उसने अपील करते हुए कहा है कि उनलोगों को राषन और रहने के लिए आवास की सुविधा मिल जाती तो इस नारकीय जीवन से निजात मिल पाता.

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