खुलासा : उबर के तेज रफ्तार बिजनेस के सफलता का पर्दाफास, कई नियम तोड़े सरकारों से बनाया गठजोड़

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नई दिल्‍ली. दुनिया की सबसे बड़ी कैब एग्रीगेटर सेवा कंपनी उबर (Uber) ने एक दशक में ही अपना कारोबार भारत सहित 72 देशों में फैला लिया और 44 अरब डॉलर की कंपनी बन गई. इतनी तेज और बड़ी सफलता के पीछे का सच उजागर हुआ तो सभी अवाक रह गए.

इंडियन एक्‍सप्रेस की खबर के मुताबिक, उबर ने अपने बिजनेस विस्‍तार के दौरान कई कानून तोड़े और कई सरकारों, अधिकारियों के साथ साठगांठ भी की. खोजी पत्रकारों के अंतरराष्‍ट्रीय संगठन (ICIJ) व अन्‍य मीडिया हाउस ने साथ मिलकर उबर की इंटरनल फाइल को खंगाला. जांच के दौरान कंपनी के 1.2 लाख ईमेल, टेक्‍स्‍ट मैसेज व अन्‍य आंतरिक दस्‍तावेजों की पड़ताल की गई, जिसमें पता चला कि कैसे टेक दिग्गज उबर ने कानूनों की धज्जियां उड़ाईं, पुलिस को ठगा, ड्राइवरों के खिलाफ हिंसा का फायदा उठाया और गुप्त रूप से सरकारों के साथ सांठगांठ की.

पांच साल चला कंपनी का तगड़ा खेल

जांच में पता चला है कि कंपनी के कारनामे 5 साल तक चले जब उबर को उसके सह-संस्‍थापक ट्रैविस क्‍लानिक चला रहे थे. साल 2013 से 2017 तक की फाइलों में 83,000 से अधिक ईमेल और व्हाट्सअप संदेश शामिल हैं, जिनमें ट्रैविस क्‍लानिक और उनके शीर्ष अधिकारियों की टीम के बीच बातचीत का खुलासा है. इसकी पड़ताल से पता चलता है कि कैसे उबर ने प्रधानमंत्रियों, राष्ट्रपतियों, अरबपतियों और मीडिया बैनर से साठगांठ कर अपने लिए समर्थन जुटाया. ट्रैविस ने अपने दम पर दुनियाभर के शहरों में कैब-हेलिंग सेवा शुरू करने के लिए कई स्‍तरों पर कानून और टैक्सी नियमों की धज्जियां उड़ाईं.

भारत में कैसे जमाई जड़ें

उबर के एशिया प्रमुख रहे ऐलन पेन ने अगस्‍त, 2014 को अपनी भारतीय टीम को लिखे एक ईमेल में कहा- हमने भारत में सफलतापूर्वक एक साल पूरे कर लिए हैं. यहां लगभग सभी शहरों में हमारे पास कई लोकल और नेशनल इश्‍यू हैं, लेकिन इन सबके बीच ही उबर का बिजनेस आगे बढ़ता रहेगा. रिकॉर्ड से पता चलता है कि भारत में उबर की साठगांठ कई नियामकीय प्राधिकरणों के साथ रही. इसमें जीएसटी, इनकम टैक्‍स विभाग, कंज्‍यूमर फोरम, रिजर्व बैंक और सर्विस टैक्‍स विभाग जैसी विश्‍वसनीय संस्‍थाएं शामिल रहीं.

सितंबर, 2014 में उबर ने अपने कर्मचारियों को भारत की एक केस स्‍टडी के बारे में बताया जिसमें सर्विस टैक्‍स का मुद्दा था. इसमें कहा गया था भारतीय अथॉरिटी ने उबर को अपनी पासबुक दिखाने को कहा है, वरना फ्राॅड के मामले का सामना करना पड़ेगा. हालांकि, इसके कुछ ही महीने बाद दिसंबर, 2014 में उबर के एक ड्राइवर ने दिल्‍ली में 25 साल की महिला यात्री से रेप किया. उबर के दर्जनों आंतरिक मेल खगालने से पता चलता है कि इस घटना के बाद दिल्‍ली सरकार ने कंपनी को स्‍पष्‍ट रूप से लाल झंडी दिखा दी और उसके बोरिया-बिस्‍तर समेटने की नौबत आ गई. लेकिन, सरकार के शीर्ष अधिकारियों ने पूरा ठीकरा ड्राइवरों पर फोड़ा और उन्‍हें मिलने वाले लाइसेंस सिस्‍टम को जिम्‍मेदार ठहराया.

डैमेज कंट्रोल भी अधूरा

रेप की घटना के बाद कंपनी दहशत में आ गई और डैमेज कंट्रोल शुरू कर दिया. उस समय उबर के कंम्‍यूनिकेशंस यूनिट के प्रमुख रहे नायरी हॉरडा‍जियान ने घटना के महज 6 दिन बाद 11 दिसंबर, 2014 को अपने कर्मचारियों को लिखे ईमेल में कहा- याद रहे सबकुछ हमारे कंट्रोल में नहीं है. कई बार हमारे सामने ऐसी समस्‍याएं आ जाती हैं जो हमें कानून तोड़ने की ओर से ले जाती हैं. पड़ताल में खुलासा हुआ कि इसके बाद कंपनी ने जो भी सुरक्षा सिस्‍टम अपने कैब में लगाने की बात कही थी, उसे 6 साल बाद भी नहीं तैयार किया जा सका. इसमें कैब में लगने वाली पैनिक बटन भी शामिल है, जो सीधे दिल्‍ली पुलिस और परिवहन विभाग से जुड़ा था.

तकनीक के सहारे कानून में सेंध

ट्रैविस के कार्यकाल में ही उबर ने “nastytech” टेक्‍नोलॉजी का सहारा लिया और इसका इस्‍तेमाल ग्रेबाल व जियोफेंसिंग की तरह किया, जो पुलिस और सरकारी अधिकारियों की नजर से कंपनी की चालबाजियों को छुपाए रखता था. इतना ही नहीं 13 से अधिक ऐसे मामलों का भी खुलासा हुआ जिसमें कंपनी के कई देशों में ‘Kill Switch’ का इस्‍तेमाल करने की बात उजागर हुई है. यह तकनीक उबर के लोकल सिस्‍टम को जांच के समय फायरवाल की तरह प्रोटेक्‍ट करती थी. 6 ऐसे मामलों का खुलासा हुआ जब उबर के ऑफिस में रेड के समय ‘Kill Switch’ का इस्‍तेमाल किया गया. इसमें भारत में हुई जांच-पड़ताल भी शामिल है.

कई दिग्गज नामों का खुलासा

इस लीक में ट्रैविस और फ्रांस के राष्‍ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के बीच बातचीत भी शामिल हैं, जिन्होंने गुप्त रूप से फ्रांस में कंपनी की मदद की थी जब मैक्रों वित्तमंत्री थे. रिपोर्ट के अनुसार, फ्रांसीसी राष्ट्रपति मैक्रों ने उबर की मदद करने के लिए हद पार कर दी, यहां तक कि कंपनी को यह भी बताया कि उन्होंने फ्रांसीसी कैबिनेट में अपने विरोधियों के साथ एक गुप्त सौदा किया था. इसके अलावा जर्मन चांसलर, ओलाफ स्कोल्ज, जो उस समय हैम्बर्ग के मेयर थे, उन्‍होंने उबर लॉबिस्टों को तवज्जो नहीं दी. तत्कालीन अमेरिकी उप-राष्ट्रपति और उबर के समर्थक रहे जो बाइडेन जब दावोस में वल्र्ड इकोनॉमिक फोरम में कंपनी के साथ बैठक में देर से आए, तो ट्रैविस ने एक सहयोगी से कहा- मैंने अपने लोगों से कहा है कि जो जितनी देर से आएगा, मेरे पास उसके लिए उतना ही कम वक्त होगा.

कंपनी की सफाई….

ट्रैविस क्‍लानिक ने अपने प्रवक्ता, डेवोन स्पर्जन के माध्यम से आईसीआईजे को जवाब दिया था कि जब 2009 में उबर की स्‍थापना की तो अपनी टीम के साथ ऐसे उद्योग का बीड़ा उठाया जो आज हर किसी की जरूरत बन गया है. ऐसा करने के लिए बड़े बदलाव की जरूरत थी. चूंकि, उस समय कैब एग्रीगेटर के लिए कोई नियम नहीं थो, तो हमारे कई कदम को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया. उबर ने कभी यह सुझाव नहीं दिया कि ड्राइवर की किसी हिंसा का कंपनी के हित में लाभ उठाया जाए.

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