राज्यसभा सांसद और वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने एक बयान देते हुए कहा है कि उन्हें 50 साल कोर्ट में प्रैक्टिस करने के बाद भी सुप्रीम कोर्ट से कोई उम्मीद नहीं बची है। कपिल सिब्बल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा कोई ऐतिहासिक फैसला भले भी पास हो जाए, लेकिन इससे जमीनी हकीकत शायद ही बदलती है। कपिल सिब्बल एक पीपुल्स ट्रिब्यूनल के कार्यक्रम में बोल रहे थे।
कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट के कुछ हालिया फैसलों को लेकर अपनी असहमति दर्ज कराई और नाराजगी व्यक्त की। गुजरात दंगों में याचिकाकर्ता जाकिया जाफरी की याचिका ख़ारिज करने को लेकर और सुप्रीम कोर्ट द्वारा मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम के प्रावधानों को बरकरार रखने के फैसले की भी आलोचना की, जिसमे प्रवर्तन निदेशालय को व्यापक अधिकार दिए गए थे। बता दें कि दोनों ही मामलों में कपिल सिब्बल याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए थे।
कपिल सिब्बल ने आईपीसी की धारा 377 को असंवैधानिक घोषित करने के फैसले का उदाहरण देते हुए कहा कि फैसला सुनाए जाने के बावजूद जमीनी हकीकत जस की तस बनी हुई है। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता तभी संभव है जब हम अपने अधिकारों के लिए खड़े हों और उस स्वतंत्रता की मांग करें। उन्होंने कहा कि राजनीतिक रूप से संवेदनशील मामले कुछ न्यायाधीशों को सौंपे जाते हैं और फैसले की भविष्यवाणी पहले से ही की जा सकती है।
लॉ वेबसाइट लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित हालिया पीएमएलए फैसले को संबोधित करते हुए कपिल सिब्बल ने कहा कि प्रवर्तन निदेशालय बेहद खतरनाक हो गया है और उसने व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सीमाओं को पार किया है। उन्होंने कहा कि मामले की अध्यक्षता करने वाले न्यायाधीश ने कहा था कि पीएमएलए एक दंडात्मक क़ानून नहीं है, जबकि अपराध शब्द सहित पीएमएलए के तहत ‘अपराध से प्राप्त संपत्ति’ की परिभाषा दंडनीय है।
बता दें कि पिछले महीने मोहम्मद जुबैर की गिरफ्तारी पर भी सिब्बल ने कोर्ट से असहमति जताई थी। उन्होंने कहा था कि हाल के दिनों में जो कुछ हुआ है, उसके लिए संस्था के कुछ सदस्यों ने हमें निराश किया और मैं अपना सिर शर्म से झुकाता हूं।